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आगे न्हाय श्रम मिटाय बलरामजी सब गोपियो को सुख दे साथ ले बन से चल नगर में आए, तहाँ―

गोपी कहैं सुनौ ब्रजनाथ। हमकौ हूँ ले चलियौ साथ॥

यह बात सुन बलरामजी गोपियों को आसा भरोसा दे, ढाढ़स बँधाय बिदाकर बिदा होने नंद जसोदा के निकट गये। पुनि विन्हे भी समझाये बुझाय धीरज बँधाय, कई दिन रह विदा हो द्वारका को चले और कितने एक दिनों में जाय पहुँचे।