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कि महाराज, इसे इस भेष से कैसे मारेगे? प्रभु ने कहा-कपटी के मारने का कुछ दोष नहीं।

इतना कह हरि ने सुदरसन चक्र को आज्ञा दी। उसने जातेही जो दो भुजा काठ की थी सो उखाड़ लीं, उसके साथ गरुड़ भी टूटा औ तुरंग भागा। जब बासुदेव पौड्रक नीचे गिरा तब सुदरसन ने उसका सिर काट फेका।

कटत सीस नृप पौड्रक तन्यो। सीस जाय काशी में पन्यो॥
जहाँ हुतौ ताकौ रनवासु। देखत सीस सुंदरी तासु॥
रोवे यो कहि खैंचे बार। यह गति कहा भई करतार॥
तुम तो अजर अमर है भए। कैसे प्रान पलक मे गए॥

महाराज, रानियो का रोना सुन सुदक्ष नाम उसका एक बेटा था सो वहॉ आय, बाप का सिर कटा देख अति क्रोध कर कहने लगा कि जिसने मेरे पिता को मारा है उससे मै बिन पलटा लिये न रहूँगा।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, बासुदेव पौड्रक को मार श्रीकृष्णचंदजी तो अपना सब कटक ले द्वारका को सिधारे औ उसका बेटा अपने बाप का बैर लेने को महादेवजी की अति कठिन तपस्या करने लगा। इसमे कितने एक दिन पीछे एक दिन प्रसन्न हो महादेव भोलानाथ ने आय कहा कि बर मॉग। यह बोला― महाराज, मुझे यही बर दीजे कि श्रीकृष्ण से मै अपने पिता का बैर लूँ। शिवजी बोले—अच्छा, जो तू बैर लिया चाहता है तो एक काम कर। बोला—क्या? कहा—उलटे वेदमंत्रो से यज्ञ कर, इससे एक राक्षसी अग्नि से निकलेगी, उससे जो तू कहैगा सो वह करेगी। इतना बचन शिवजी के मुख