पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३७९

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से सुन महाराज, वह जाय ब्राह्मनों को बुलवाय बेदी रच तिल, जौ, घी, चीनी आदि सब होम की सामा ले शाकल बनाय लगा उलटे बेदमंत्र पढ़ पढ़ होम करने। निदान यज्ञ करते करते अग्निकुंड से कृत्या नाम एक राक्षसी निकली, सो श्रीकृष्णजी के पीछे ही पीछे नगर देस गॉव जलाती जलाती द्वारकापुरी में पहुँची औ लगी पुरी को जलाने.। नगर को जलता देख सब जदुबंसी भय खाय श्रीकृष्णचंदजी के पास जा पुकारे कि महाराज, इस आग से कैसे बचेगे, यह तो सारे नगर को जलाती चली आती है। प्रभु बोले—तुम किसी बात की चिता मत करो, यह कृत्या नाम राक्षसी काशीसे आई है, मै अभी इसका उपाय करता हूँ।

महाराज, इतना कह श्रीकृष्णजी ने सुदरसन चक्र को आज्ञा दी कि इसे मार भगाव और इसी समय जाय काशीपुरी को जलाच आव। हरि की आज्ञा पातेही सुदरसन चक्र ने कृत्या को मार भगाया औ बात के कहते ही काशी को जा जलाया।

परजा भाग फिरे दुखारी। गारी देहिं सुदक्षहि भारी॥
फियौ चक्र शिवपुरी जराय। सोई कही कृष्ण सो आय॥