पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३३८)


काम किया, जो रस में आय अनरस किया। कर्न बोला कि जदुबंसियो की सदा से यह टेव है कि जहॉ कहीं शुभ काज में जाते है तहॉ उपाधही करते हैं। सल्य ने कहा―

जातहीन अबही ये बढ़े। राज पाय माथे पर चढ़े।।

इतनी बात के सुनतेही सब कौरव महा कोप कर अपने अपने अस्त्र शस्त्र ले यो कह चढ़ दौड़े कि देखे वह कैसा बली है। जो हमारे आगे से कन्या ले निकल जायगा औ बीच बाट के संबू को जा घेरा। आगे दोनों ओर से शस्त्र चलने लगे। निदान कितनी एक बेर के लड़ने में जब संबू का सारथी मारा गया औ वह नीचे उतरा, तब ये उसे घेर पकड़कर बॉध लाए। सभा के बीचो बीच खड़ाकर इन्होने उससे पूछा कि अब तेरा पराक्रम कहॉ गया? यह बात सुन वह लजाय रहा। इसमें नारदजी ने आय राजा दुर्योधन समेत सब कौरवो से कहा कि यह संबू नाम श्रीकृष्णचंद का पुत्र है। तुम इसे कुछ मत कहो, जो होना था सो हुआ! अभी इसके समाचार पाय दल साज आवेगे श्रीकृष्ण औ बलराम, जो कुछ कहना सुनन्दा हो सो उनसे कह सुन लीजो, लड़के से बात कहनी तुम्हे किसी भॉति उचित नही, इसने लड़कबुद्धि की तो की। महाराज, इतना बचन कह नारदजी वहॉ से बिदा हो, चले चले द्वारका पुरी गये और उग्रसेन राजा की सभा में जा खड़े रहे।

देखत सबै उठे सिर नाय। आसन दियौ ततक्षन लाय।।

बैठतेही नारदजी बोले कि महाराज, कौरवो ने संबू को बॉध महा दुख दिया औ देते है, जो इस समै जाय उसकी सुध लो तो लो नहीं फिर संबू का बचना कठिन है।