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उदा॰―

'श्रीराजाजी, यहाँ सर्वेश्वर श्रीकृष्ण हैं अरु धनुषधारी अर्जुन हैं तिहां ही निश्चय जय हो जायगी वहाँ ही अनंत विभूति होयगी। ए मेरी मति करिकै में निश्चय करत हूँ। ऐसे प्रकार संजय राजा धृतराष्ट्र कूं कह्यो।'

अज्ञात

शाहजहां के पुत्र सुल्तान दाराशिकोह ने सं॰ १७१२ वि॰ में उपनिषदो को फारसी में अनुवाद कराया था, जिसका सं॰ १७७६ में हिंदुवी में अनुवाद हुआ। दोनों अनुवादकों को नाम ज्ञात नहीं हुअ।
उदा॰―

'चतुर्थ अवस्था आत्मा की क्यों जु वहि हूँ अद्वती है, ब्रह्म को जु निकट अरु साछी है ज्ञातव्य है वाको चाह्य प्रापत भया। यह उपनिषद नृसिह तापनि जु सिद्धांत की अवध है अरु सर्व जुग तो ज्ञान अरु जज्ञासी की आया में खैंचत है अरु उपनिषदो का रहस्य है याम।'

रामहरि

सं॰१५९० के लगभग रूप गोस्वामी ने विदग्धमाधव तथा फलित माधव नाम के दो नाटक लिखे थे। इन्हीं में से प्रथम का आख्यति ब्रज भाषा गद्य में सं॰ १८२४ में लिखा गया था। लेखक जयपुर निवासी ज्ञात होते हैं।
उदा॰―

श्रीबृंदावन नित्यविहार जानि के उजीन नगरी को बास छाड़ि करि संदीपन रिषीस्वर की माता ताको नाम पुर्णमासी कहावै तिर