पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३४५)

नारद सुन विनवै सिर नाय। मॉपर कृपा करौ यदुराय॥

जो आपकी भक्ति सदा मेरे चित्त में रहे औ मेरा मन माया के बस होय विषय की वासना न चहै। राजा, इतना कह नारद जी प्रभु से बिदा हो दंडवत कर बीन बजाते गुन गाते अपने स्थान को गये औ श्रीकृष्णचंदजी द्वारका में लीला करते रहे।