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बहत्तरवाँ अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, पहले तो श्रीकृष्णचंदजी ने उस ब्राह्मन को इतना कह बिदा किया, जो राजाओं को संदेसा लाया था, कि देवता तुम हमारी ओर से सब राजाओं से जाय कहो कि तुम किसी बात की चिता मत करो, हम बेग आय तुम्हें छुड़ाते हैं। महाराज, यह बात कह श्रीकृष्णचंद ब्राह्मन को विदा कर ऊधोजी को साथ ले राजा उग्रसेन सूरसेन की सभा में गये औ इन्होने सब समाचार उनके आगे कहे। वे सुन चुप हो रहे। इसमे ऊधोजी बोले कि महाराज, ये दोनों काज कीजे। पहले राजाओ को जरासंध से छुड़ा लीजे, पीछे चलकर यज्ञ सँवारिये क्यो कि राजसूय यज्ञ का काम बिन राजा और कोई नहीं कर सकता औ वहॉ बीस सहस्र नृप इकठे हैं। विन्हैं छुड़ाओगे तो वे सब गुन मान यज्ञ का काज बिन बुलाए जाकर करेंगे। महाराज, और कोई दसो दिस जीत आवेगा तो भी इतने राजा इकट्टे न पावेगा। इससे अब उत्तम यही है कि हस्तिनापुर को चलिये। पांडवो से मिल भता कर जो काम करना हो सो करिये।

महाराज, इतना कह पुनि ऊधोजी बोले कि महाराज, राजा जरासंध बड़ा दाता औ गौ ब्राह्मन को मानने औ पूजनेवाला हैं। जो कोई विससे जाकर जो मांगता है सो पाता है, जाचक उसके यहां से विमुख नही आता है। वह झूठ नहीं बोलता, जिससे बचनबंध होता है विससे निंबाहता हैं औ दस सहस्र हाथी का बल रखता है। उसके बल की समान भीमसेन का बल है। नाथ, जो