पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३९७

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सहदेव नकुल देख फिर आये। राजा को ये बचन मुनाये॥
प्राणनाथ आये हैं हरी। सुनि राजा चिंता परिहरी॥

आगे अति आनंद कर राजा युधिष्ठिर ने भीम अर्जुन को बुलाय के कहा कि भाई तुम चारों भाई आगू जाय श्रीकृष्णचंद आनंदकंद को ले आओ। महाराज, राजा की आज्ञा पाय औ प्रभु की आना सुन वे चारो भाई अति प्रसन्न हो भेट पूजा की सामा औ बड़े अड़े पंडितो को साथ ले बाजे गाजे से प्रभु को लेने चले। निदान अति आदर मान से मिल, वेद की विधि से भेट पूजा कर- ये चारो भाई श्रीकृष्णजी को सब समेत पार्टबर के पावड़े डालते, चोआ, चदन, गुलाबनीर छिड़कते, चाँदी सोने के फूल बरसाते, धूप दीप नैवेद्य करते, बाजे गाजे से नगर में ले आये। राजा युधिष्ठिर ने प्रभु से मिल अति सुख माना औ अपना जीवन सुफल जाना। आगे बाहर भीतर सबने सबसे मिल जथाजोग्य परस्पर सनमान किया, औ नयनो को सुख दिया। घर बाहर सारे नगर में आनंद हो गया औ श्रीकृष्णचंद वहॉ रह सब को सुख देने लगे।