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जाय दसो दिसा के राजाओं को जीत अपने बस कर आवें, पीछे आप निचिंताई से यज्ञ कीजे।

राजा, प्रभु के मुख से इतनी बात जों निकली तोंही राजा युधिष्ठिर अपने चारो भाइयो को बुलाय कटक दे चारों को चारों ओर भेज दिया। दक्षिन को सहदेवजी पधारे, पश्चिम को नकुल सिधारे उत्तर को अर्जुन धाए, पूरब मे भीमसेन जी आए। आगे कितने एक दिन के बीच, महाराज, वे चारो हरिप्रताप से सात द्वीप नौ खंड जीत, दसो दिसा के राजाओं को बस कर अपने साथ ले आए। उस काल राजा युधिष्ठिर ने हाथ जोड़ श्रीकृष्णचंदजी से कहा कि महाराज, आपकी सहायता से यह काम तो हुआ अब क्या आज्ञा होती है? इस मे ऊधो जी बोले कि धर्मावतार, सब देश के नरेश तो आए, पर अब एक मगध देस को राजा जरासंध ही आपके बस को नही और जब तक वह बस न होगा तब तक यज्ञ भी करना सुफल न होगा। महाराज, जरासंध राजा वृहद्रथ का बेटा महाबली बड़ा प्रतापी औ अति दानी धर्मात्मा है। हर किसी का सामर्थ नहीं जो उसका सामना करे। इस बात को सुन जों राजा युधिष्ठिर उदास हुए तो श्रीकृष्णचंद बोले कि महाराज, आप किसी बात की चिंता न कीजे, भाई भीम अर्जुन समेत हमें आज्ञा दीजे। कै तो बल छलकर हम उसे पकड़ लावें, कै मार आवे। इस बात के सुनतेही राजा युधिष्ठिर ने दोनों भाइयों को आज्ञा दी, तब हरि ने उन दोनों को अपने साथ ले मगध देश की बाट ली। आगे जाय पथ में श्रीकृष्णजी ने अर्जुन और भीम से कहा कि―


*―(क) में जैद्रथ है।