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कठिन बंधन से छुड़ाया, तैसेही अब हमे गृह रूप कूप से निकाल काम, क्रोध, लोभ, मोह से छुड़ाइये, जो हम एकात बैठ आपका ध्यान करै औ भवसागर को तरै। श्रीशुकदेवजी बोले कि राजा, जब सब राजाओ ने ऐसे ज्ञान वैराग्य भरे बचन कहे, तब श्रीकृष्णचंदजी प्रसन्न हो बोले कि सुनौ जिनके मन में मेरी भक्ति है वे निःसंदेह भक्ति मुक्ति पावेगे। बंध मोक्ष मन ही का कारन है, जिसका मन स्थिर है तिन्हें घर औ बन समान है। तुम और किसी बात की चिता मत करो, आनंद से घर मे बैठ नीति सहित राज करो, प्रजा को पालो, गौ ब्राह्मण की सेवा में रहो, झूठ मत भाखो, काम, क्रोध, लोभ, अभिमान तजो, भाव भक्ति से हरि को भजो, तुम निःसंदेह परम पद पाओगे। संसार में आय जिसने अभिमान किया वह बहुत न जिया, देखो अभिमान ने किसे किसे न खो दिया।

सहसबाहु अति बली बखान्यौ। परसुराम ताकौ बल भान्यौं॥
बेनु भूप रावन हो भयौ। गर्व अपने सोऊ गयौ॥
भौमासुर वानासुर कंस। भये गर्व ते तें विध्वंस॥
श्रीमद गर्च करो जिन कोय। त्यागै गर्व सो निर्भय होय॥

इतना कह श्रीकृष्णचंदजी ने सब राजाओ से कहा कि अब तुम अपने घर जाओ, कुटुंब से मिल अपना राज पाट सँभाल, हमारे न पहुँचते न पहुँचते हस्तिनापुर में राजा युधिष्ठिर के यहॉ राजसूय यज्ञ में शीघ्र आओ। महाराज, इतना बचन श्रीकृष्णचंदजी के मुख से निकलतेही सहदेव ने सब राजाओ के जाने का सामान जितना चाहिये तितना बात की बात में ला उपस्थित किया। वे ले प्रभु से बिदा हो अपने अपने देसो को गए औ