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पचहत्तरवाँ अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले कि राजा, जैसे यज्ञ राजा युधिष्ठिर ने किया औ सिसुपाल मारा गया तैसे मैं सब कथा कहता हूँ, तुम चित दे सुनो। बीस सहस्र अठि सौ राजाओ के जातेही चारो ओर के और जितने राजा थे, क्या सूर्यबंसी औ क्या चंद्रबंसी, तितने सब आय हस्तिनापुर में उपस्थित हुए। उस समय श्रीकृष्णचंद औ राजा युधिष्ठिर ने मिलकर सब राजाओं का सब भॉति शिष्टाचार कर समाधान किया औ हर एक को एक एक काम यज्ञ का सौपा। आगे कृष्णचंदजी ने राजा युधिष्ठिर से कहा कि महाराज, भीम, अर्जुन नकुल, सहदेव सहित हम पाचो भाई तो सब राजाओ को साथ ले ऊपर की टहल करैं और आप ऋषि मुनि ब्राह्मनो को बुलाय यज्ञ का आरंभ कीजै। महाराज, इतनी बात के सुनतेही राजा युधिष्ठिर ने सब ऋषि मुनि ब्राह्मनो को बुलाकर पूछा कि महाराजो, जो जो वस्तु यज्ञ में चाहिये, सो सो आज्ञा कीजे। महाराज, इस बात के कहतेही ऋषि मुनि ब्राह्मनो ने ग्रंथ देख देख यज्ञ की सब सामग्री एक पत्र पर लिख दी औ राजा ने वोही मँगवाय उनके आगे धरवा दी। ऋषि मुनि ब्राह्मनो ने मिले यज्ञ की बेदी रची। चारो वेद के सब ऋषि मुनि ब्राह्मन वेदी के बीच आसन बिछाय बिछाय जा बैठे। पुनि सुच होय स्त्री सहित गंठजोड़ा बॉध राजा युधिष्ठिर भी आय बैठे औ द्रोनाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट, दुर्योधन, सिसुपाल आदि जितने योधा औ बड़े बड़े राजा थे वे भी आन बैठे। ब्राह्मनों ने स्वस्ति-