पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/४११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३६५)

बाचन कर गणेश पुजवाय, कलश स्थापन कर प्रहस्थापन किया। राजा ने भरद्वाज, गौतम, वशिष्ठ, विश्वामित्र, बामदेव, परासर, व्यास, कस्यप आदि बड़े बड़े ऋषि मुनि ब्राह्मनों का बरन किया औ विन्होने बेद मंत्र पढ़ पढ़ सब देवताओं का आवाहन किया औ राजा से यज्ञ का संकल्प करवाय होम का आरम्भ।

महाराज, मंत्र पढ़ पढ़कर ऋषि मुनि ब्राह्मन आहुति देने लगे औ देवता प्रत्यक्ष हाथ बढ़ाय बढ़ाय लेनै। उस समय ब्राह्मन वेद पाठ करते थे औ सब राजा होमने की सामग्री लाला देते थे औ राजा युधिष्ठिर होमते थे कि इसमें निर्द्वंद यज्ञ पूरन हुआ औ राजा ने पूर्नाहुति दी। उस काल सुर नर मुनि सब राजा को धन्य धन्य कहने लगे औ यक्ष गंधर्व किन्नर बाजन बजाय बजाय, जस गाय गाय फूल बरसावने। इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, यज्ञ से निचिन्त हो राजा युधिष्ठिर ने सहदेवजी को बुलाय के पूछा―

पहले पूजा काकी कीजै। अक्षत तिलक कौन को दीजै॥
कौन बड़ो देवने कौ ईस। ताहि पूज हम नावे सीस॥

सहदेवजी बोले कि महाराज, सब देवों के देव है बासुदेव, कोई नही जानता इनका भेव। ये है ब्रह्मा रुद्र इन्द्र के ईस, इन्हीं को पहले पूज नवाइये सीस। जैसे तरवर की जड़ में जल देने से सब शाखा हरी होती है, वैसे हरि की पूजा करने से सब देवता सन्तुष्ट होते हैं। यही जगत के करता है औ येही उपजाते पालते मारते है। इनकी लीला है अनन्त, कोई नहीं जानता इनका अंत। येई हैं प्रभु अलख अगोचर अविनासी, इन्हींके चरनकँवल सदा