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उदा॰―

'तब श्रीकृष्ण अधोर बंसी बजाई। ब्रज गोपिकानि सुनि राधिका, ललिता, विशाषादि गोपी आई। रास मंडल रच्यो, राग, रंग, नृत्य, गान, लाभ, आलिंगन, संभासन भया। उदाहि सर में जलक्रीडा स्नान गोपी कुच कुंकुम केशर छुट्यो सो गोपीचंदन भयौ, गोपी तलाई भई वृजप्राप्ति।'

बख़्तेश

राजा रत्नेश के भाई शत्रुजित के आश्रय में वि॰ सं॰ १८२८ में रसराज पर दीको लिखी।
उदा॰―

'नाइकी नाइक जो है ताके आलंबित कहैं आधार श्रृंगार रस होत है। कौन प्रकार कै आधार कहैं देषकै तातै कवि कहत है कै नाइका नाइक कौ बरनन करत हौ अपनी बुद्धि के अनुसार हैं ग्रंथ को नाम रसराज है सो रस नाइका नाइक के अधीन होत है।'

जटमल

सं॰ १६८० वि॰ में जटमल कवीश्वर ने महाराणा रत्नसेन, पद्मावती तथा गोरा और बादल के वृत्तांत को पद्य में लिखा है जिसका गद्यानुवाद सं॰ १८२० में हुआ। इसमे खड़ी बोली का मिश्रण अधिक है। इस ग्रंथ का नाम गोरा बादल की कथा है। अनुवाद से नीचे उदाहरण दिया गया है।
उदा॰― 'गोरे की आवरत आवे सो वचन सुनकर अपने पाबंद की पगड़ी हाथ में लेकर वाहा सती हुई सो सिवपुर में जाके वाहा