श्रीशुकदेवजी बोले कि राजा अब मै प्रभु के कुरक्षेत्र जाने की कथा कहता हूँ तुम चित दे सुनौ कि जैसे द्वारका से सब यदुबसियो को साथ ले श्रीकृष्णचंद औ बलरामजी सूर्यग्रहन न्हाने कुरक्षेत्र गए। राजा ने कहा-महाराज, आप कहिये मैं मन दे सुनता हूँँ। पुनि श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, एक समय सूर्यग्रहन के समाचार पाय श्रीकृष्णचंद और बलदेवजी ने राजा उग्रसेन के पास जायके कहा कि महाराज, बहुत दिन पीछे सूर्यग्रहन आया है जो इस पर्व को कुरक्षेत्र में चलकर कीजे तो बड़ा पुन्य होय, क्यौंकि शास्त्र में लिखा है कि कुरक्षेत्र में जो दान पुन्य करिये सो सहस्र गुना होय। इतनी बात के सुनते ही यदुबंसियों ने श्रीकृष्णचंदजी से पूछा कि महाराज, कुरक्षेत्र ऐसा तीर्थ कैसे हुआ सो कृपा कर हमें समझाके कहिये।
श्रीकृष्ण जी बोले कि सुनौ यमदग्नि ऋषि बड़े ज्ञानी ध्यानी तपस्वी तेजस्वी थे, तिनके तीन पुत्र हुए, उनमे सब से बड़े परशुराम, सो बैराग कर घर छोड़ चित्रकूट में जाय रहे और सदाशिव की तपस्या करने लगे। लड़को के होते ही यमदग्नि ऋषि गृहस्थाश्रम छोड़ बैराग कर स्त्री सहित बन में जाय तप करने लगे। उनकी स्त्री का नाम रेनुका, सो एक दिन अपनी बहन को नौतने गई। उसकी बहन राजा सहस्रार्जुन की स्त्री थी। नौता देते ही अहंकार कर राजा सहस्रार्जुन की रानी, रेनुका की बहन, हँसकर
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