पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/४३९

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ब्राह्मन से कहा कि देवता, तुम जाय हमारी ओर से यमदग्नि ऋषि से कहो कि सहस्रार्जुन ने कामधेनु माँगी है।

बात के सुनते ही वह ब्राह्मन संदेसा ले ऋषि के पास गया औ उसने सहस्रार्जुन की कही बात कही। ऋषि बोले कि यह गाय हमारी नहीं जो हम द। यह तो राजा इंद्र की है हम इसे दे नहीं सकते। तुम जाय अपने राजा से कहो। बात के कहते ही ब्राह्मन ने आय सहस्रार्जुन से कहा कि महाराज, ऋषि ने कहा है, कामधेनु हमारी नहीं यह तो राजा इंद्र की हैं, इसे हम दे नहीं सकते। इतनी बात ब्राह्मन के मुख से निकलते ही सहस्रार्जुन ने अपने कितने एक जोधाओ को बुलाय के कहा―अभी जाय यमदग्नि के घर से कामधेनु खोल लाओ।

स्वामी की आज्ञा पाय जोधा ऋषि के स्थान पर गए औ जो धेनु को खोल यमदग्नि के सनसुख हो चले, तो ऋषि ने दौड़कर बाट मे जाय कामधेनु को रोका। यह समाचार पाय, क्रोध कर सहस्रार्जुन ने आ, ऋषि का सिर काट डाला। कामधेनु भाग इंद्र के यहॉ गई, रेनुका आय पति के पास खड़ी भई।

सिर खसोट लोटत फिरै, बैठि रहै गहि पाय।
छाती पीटै रुदन करि, पिउ पिउ कहि बिललाय॥

उस काल रेनुका का बिलबिलाना औ रोना सुन दसों दिसा के दिग्पाल जाग उठे औ परशुरामजी का तप करते करते आसन ढिगा औ ध्यान छूटा। ध्यान के छूटते ही ज्ञान कर परशुरामजी अपना कुठार ले वहॉ आये जहॉ पिता की लोथ पड़ी थी औ माता छाती पीटती खड़ी थी। देखते ही परशुरामजी को महा क्रोध हुआ, इसमें रेनुका ने पति के मारे जाने का सब भेद पुत्र को