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सदासुखलाल

इनका जन्म सं॰ १८०३ और मृत्यु सं॰ १९०१ में हुई। यह कंपनी की अधीनता में चुनार में कुछ दिन तक अच्छे पद पर रहकर पैंसठ वर्ष की अवस्था में नौकरी छोड़कर प्रयाग चले आए। यहीं हरिभजन तथा साहित्य-सेवा में जीवन व्यतीत कर दिया। फारसी में 'नियाज़' उपनाम था। इन्होने श्रीमद्भागवत को गद्य में अनुवाद किया है और बहुत से स्फुट लेख लिखे हैं। मुंशीज फ़ारसी, उर्दू और हिंदी के अच्छे लेखक थे।
उदा॰―

'यद्यपि ऐसे विचार से हमें लोग नास्तिक कहैंगे, हमैं इस बात का डर नहीं, जो बात सत्य होय उसे कहा चाहिये, कोई बुरा माने कि भला माने। विद्या इस हेतु पड़ते हैं कि तात्पर्य इसका सतोवृत्ति है वह प्राप्त हो और उससे निज स्परूप में लय हूजिए। इस हेतु नहीं पढ़ते हैं कि चतुराई की बातें कहके लोगो को बहकाइये और फुसलाइये और असत्य छिपाइये।

सैयद इंशाअल्लाह खाँ

ये मीर माशाअल्लाह के पुत्र थे और इनका जन्म मुर्शिदाबाद में हुआ था। बंगाल मैं सिराजुद्दौला के मारे जाने पर यह दिल्ली चले आए और शाह आलम के दरबार में भर्ती हो गए। परंतु प्राप्ति के कम होने से और नवाब आसफुदौला के दान की धूम सुन कर यह लखनऊ गए। यहाँ यह कुछ दिनों में एक प्रसिद्ध कवि माने जाने लगे। सं॰ १८५४ में आसफुदौला की मृत्यु होने पर उनके भाई सआदतअली खाँ नवाब हुए जिनके ये मुँहलगे