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बात की बात में सब यज्ञ की सामा मँगाय उपस्थित की और ऋषियो औ मुनियो से कहा कि कृपा कर यज्ञ का आरंभ कीजे। महाराज, बसुदेव जी के मुख से इतना बचन निकलते ही, सब ब्राह्मनो ने यज्ञ का स्थान बनाय सँवारा। इस बीच स्त्रियों समेत बसुदेवजी वेदी में जा बैठे। सब राजा औ यादव यज्ञ की टहल में आ उपस्थित हुए।

इतनी कथा सुनायश्रीशुकदेव जी ने राजा से कहा कि महाराज जिस समय बसुदेवजी वेदी मे जाय बैठे, उस काल वेद की बिधि से मुनियो ने यज्ञ का आरभ किया औ लगे वेद मंत्र पढ़ पढ़ आहुत देने औ देवता सदेह भाग आय आय लेने। महाराज, जिस काल यज्ञ होने लगा उस काल उधर किन्नर गंधर्व भेर दुंदुभी बजाय गुन गाते थे, चारन बंदी जन जस बखानते थे, उरबसी आदि अपसरा नाचती थी औ देवता अपने अपने विमानो मे बैठे फूल बरसाते थे औ इधर सब मंगली लोग गाय बजाय मंगलाचार करते थे औ जाचक जैजैकार। इसमें यज्ञ पूरन हुआ औ बसुदेवजी ने पुर्नाहुति दे ब्राह्मनों को पाटंबर पहराय अलंकृत कर, रत्न धन बहुत सा दिया औ उन्होने बेद मंत्र पढ़ पढ़ आशीर्वाद किया। आगे सब देस देस के नरेसो को भी बसुदेवजी ने पहराया औ जिमाया। पुनि उन्होंने यज्ञ की भेट कर बिदा हो अपनी अपनी बाट ली। महाराज, सब राजाओ के जाते ही नारदजी समेत सारे ऋषि मुनि भी बिदा हुए। पुनि नंदराय जी गोपी गोप ग्वाल बाल समेत जब बसुदेवजी से बिदा होने लगे, उस समय की बात कुछ कही नहीं जाती कि इधर तौ यदुवंसो करुना कर अनेक प्रकार की बाते करते थे औ उधर सब ब्रजवासी। उसका बखान कुछ कहा नही जाय, वह सुख देखे ही