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दरबारी थे। एक बार किसी हँसी की बात के कारण इन्हें सं॰ १८६६ वि॰ में घर बैठ रहना पड़ा और अंत समय तक कष्ट से कादकर सं॰ १८७३ में यह मर गए। फारसी और उर्दू में इन्होंने बहुत से काव्य लिखे हैं और रानी केतकी की कहानी नामक एक पुस्तक ठेठ हिंदी में लिखी है। यह अंतिम एकांतवास के पहिले ही लिखी गई है।
उदा॰―

‘किसी देस में किसी राजा के घर एक बेटा था उसे उसके मा बाप और सब घरके लोग कुँअर उदयभान कहके पुकारते थे। सचमुच उसके जोबन की जोत में सूरज-की एक सूते आ मिली थी। उसका अच्छापन और भला लगना कुछ ऐसा न था जो किसीके लिखने वौर कहने में आ सके। पंद्रह बरस भर के सोलहवें में पाँव रखा था, कुछ योंही सी उसकी मसें भीगती चली आती थीं अकड़ मकड़ उसमें बहुत सी समा रही थी।’

लल्लूजी लाल

इनका जीवन वृत्तांत अलग इसी ग्रंथ में दिया गया है और उदाहरण के लिये समग्र प्रेमसागर साथ ही लगा है। इनके अन्य ग्रंथो के कुछ उदाहरण भी इनके जीवनचरित्र के साथ दिए गए हैं।

सदल मिश्र

ये पं॰ लक्ष्मण मिश्र के पौत्र और नंदमणि के पुत्र थे। आरे के रहनेवाले थे। इनका जन्म लगभग सं॰ १८३० में हुआ था और मृत्यु सं॰ १९०५ में हुई। इन्होंने कई पुस्तकों का संस्कृत से