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नवासीवाँ अध्याय

शुकदेवजी बोले कि महाराज, एक समैं सरस्वती के तीर सब ऋषि मुनि बैठे तप यज्ञ करते थे कि उनमें से किसीने पूछा कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनो देवताओं में बड़ा कौन है सो कृपा कर कहो। इसमें किसीने कहा शिव, किसने कहा विष्णु, किसीने कहा ब्रह्मा, पर सबने मिल एक को बड़ा न बताया। तब कई एक बड़े बड़े मुनीशों ऋषीशो ने कहा कि हम यों तो किसीकी बात नहीं मानते पर हॉ जो कोई इन तीनों देवताओं की जाकर परीक्षा कर आवै औ धर्म सरूपी कहै तो उसका कहना सत्य मानें।

महाराज, यह बात सुन सबने प्रमान की औ ब्रह्मा के पुत्र भृगु को तीनो देवताओं की परीक्षा कर आने की आज्ञा दी। आज्ञा पाय भृगुमुनि प्रथम ब्रह्मलोक में गए औ चुपचाप ब्रह्मा की सभा में जा बैठे, न दंडवत की, न स्तुति, न परिक्रमा दी। राजा, पुत्र का अनाचार देख ब्रह्मा ने महा कोप किया औं चाहा कि श्राप हूँ पर पुत्र की ममता कर न दिया। उस काल भृगु ब्रह्मा को रजोगुन में आसक्त देख वहॉ से उठ कैलाश में गया औ जहाँ शिव पार्वती विराजते थे तहॉ जा खड़ा रहा। इसे देख शिवजी खड़े हो जो हाथ पसार मिलने को हुए तो यह बैठ गया, बैठते ही शिवजी ने अति क्रोध किया औ इसके मारने को त्रिशूल हाथ में लिया। उस समय श्रीपार्वतीजी ने अति बिनती कर पाओ पड़ महादेवजी को समझाया औ कहा कि यह तुम्हारा छोटा भाई है इसका अपराध क्षमा कीजै। कहा है―