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ले राजा उग्रसेन के द्वार पर गया औ जो उसके मुँह में आया सो कहने लगा कि तुम बड़े अधर्मी दुष्कर्मी पापी हो, तुम्हारे ही कर्म धर्म से प्रजा दुख पाती हैं औ मेरा भी पुत्र तुम्हारे ही पाप से मरा।

महाराज, इसी भॉति की अनेक अनेक बाते कह मरा लड़का राजद्वार पर रख ब्राह्मन अपने घर आया। आगे उसके आठ बेटे हुए औ आठों को वह उसी रीति से राजद्वार पर रख आया। जब नवॉ पुत्र होने को हुआ तब वह ब्राह्मन फिर राजा उग्रसेन की सभा में जा श्रीकृष्णचंदजी के सनमुख खड़ा हो पुत्रो के मरने का दुख सुमिर सुमिर रो रो यो कहने लगा― धिक्कार है राजा औ इसके राज को, पुनि धिक्कार है उन लोगों को जो इस अधर्मी की सेवा करते हैं औ धिक्कार है मुझे जो इस पुरी में रहता हूँ। जो इन पापियो के देस में न रहता तो मेरे पुत्र बचते। इन्हीं के अधर्म से मेरे पुत्र मरे औ किसी ने उपराला न किया।

महाराज, इसी ढब की सभा के बीच खड़े हो ब्राह्मन ने रो रो बहुत सी बाते कहीं पर कोई कुछ न बोला। निदान श्रीकृष्णचंदे के पास बैठा सुन सुन घबराकर अर्जुन बोला कि हे देवता, तू किस के आगे यह बात कहे है औ क्यों इतना खेद कर रहे है। इस सभा में कोई धनुर्धर नहीं जो तेरा दुख दूर करे। आज कल के राजा आपकाजी हैं, परदुःखनिवारन नही जो प्रजा को सुख दे औ गौ ब्राह्मन की रक्षा करे। ऐसे सुनाय पुनि अर्जुन ने ब्राह्मन से कहा कि देवता, अब तुम जाय अपने घर निचिंत हो बैठो जब तुम्हारे लड़का होने का दिन आवे तब तुम मेरे पास