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आइयो, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा औ लड़के को न मरने दूँगा। महाराज, इतनी बात के सुनते ही ब्राह्मन खिजलायके बोला कि मैं इस सभा के बीच श्रीकृष्ण बलराम प्रद्युम्न औ अनरुद्ध छुड़ाय ऐसा बलवान किंसीको नहीं देखता, जो मेरे पुत्र को काल के हाथ से बचावे। अर्जुन बोला कि ब्राह्मन, तू मुझे नहीं जानता कि मेरा नाम धनंजय हैं। मैं तुझसे प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो मैं तेरा सुत काल के हाथ से न बचाऊँ तो तेरे मरे हुए लड़के जहाँ पाऊँ तहाँ से ले आय तुझे दिखाऊँ औ वे भी न मिले तो गांडीव धनुष समेत अपने तई अग्नि में जलाऊँ। महाराज, प्रतिज्ञा कर जब अर्जुन ने ऐसे कहा तब वह ब्राह्मन संतोष कर अपने घर गया। पुनि पुत्र होने के समै विप्र अर्जुन के निकट आया। उस काल अर्जुन धनुष बान ले उसके साथ उठ धाया। आगे वहाँ जाय विसका घर अर्जुन ने बानो से ऐसा छाया कि जिसमें पवन भी प्रवेश न कर सके औ आप धनुष बीन लिऐ उसके चारों ओर फिरने लगा।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, अर्जुन ने बहुत सा उपाय बालक को बचाने को किया पर न बचा, और दिन बालक होने के समै रोता था, उस दिन सॉस भी न लिया, बरन पेट ही से मरा निकला। भरे लड़के का होना सुन लज्जित हो अर्जुन श्रीकृष्णचंद के निकट औया औ उसके पीछे ब्राह्मन भी। महाराज, आतेही रो रो वह ब्राह्मन कहने लगा कि रे अर्जुन, धिक्कार है तुझे औ तेरे जीतव को जो मिथ्या बचन कह संसार में लोगो को मुख दिखाता है। अरे नपुंंसक जो मेरे पुत्र को काल से न बचा सकता था, तो तैने प्रतिज्ञा की