पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

प्रेमसागर

पहला अध्याय

अथ कथा आरंभ―महाभारत के अंत में जब श्रीकृष्ण अंतरध्यान हुए तब पांडव तो महा दुखी हो हस्तिनापुर का राज परीक्षित को दे हिमालय गलने गये और राजा परीक्षित सब देश जीत धर्मराज करने लगे।

कितने एक दिन पीछे एक दिन राजा परीक्षित आखेट को गये तो वहाँ देखा कि एक गाय और बैल दौड़े चले आते हैं, तिनके पीछे मूसल हाथ लिये, एक शूद्र मारता आता है। जब वे पास पहुँचे तब राजा ने शूद्र को बुलाय दुख पाय झुँझलायकर कहा―अरे तू कौन है, अपना बखान कर, जो मारता है गाय औ बैल को जानकर। क्या अर्जुन को तैंने दूर गया जाना तिससे उसका धर्म नहीं पहचाना। सुन, पंडु के कुल में ऐसा किसी को न पावेगा कि जिसके सोहीं कोई दीन को सतावेगा। इतना कह राजा ने खड़ग हाथ में लिया। वह देख डरकर खड़ा हुआ, फिर नरपति ने गाय और बैल को भी निकट बुलाके पूछा कि तुम कौन हो, मुझे बुझाकर कहो, देवता हौ कै ब्राह्मन और किस लिये भागे जाते हो, यह निधड़के कहो। मेरे रहते किसी की इतनी सामर्थ नहीं जो तुम्हें दुख दे।

इतनी बात सुनी तब तो बैल सिर झुका बोला―महाराज, यह पाप रूप काले बरन डरावनी मूरत जो आपके सनमुख खड़ा