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( ३ )


आँख मूंद रहा है। ऐसी कुमति ठानि एक मरा साँप वहाँ पड़ा था सो धनुष से उठा ऋषि के गले में डाल अपने घर आया। मुकुट उतारते ही राजा को ज्ञान हुआ तो सोचकर कहने लगा कि कंचन में कलियुग का बास है यह मेरे सीस पर था इसीसे मेरी ऐसी कुमति हुई जो मरा सर्व ले ऋषि के गले में डाल दिया, सो मै अब समझा कि कलियुग ने मुझसे अपना पलटा लिया । इस महापाप से मैं कैसे छूटूगा, बरन धन जन स्त्री और राज, मेरा क्यो न गया सब आज, न जाने किस जन्म में यह अधर्म जायगा जो मैने ब्राह्मन को सताया है ।

राजा परीक्षित तो यहॉ इस अथाह सोचसागर में डूब रहे थे और वहाँ लोमस ऋषि थे तहाँ कितने एक लड़के खेलते हुए जा निकले, मरा सॉप उनके गले में देख अचंभे रहे और घबराकर आपस में कहने लगे कि भाई, कोई इनके पुत्र से जाके कह दे जो उपबन में कौशिकी नदी के तीर ऋषियों के बालको मे खेलता है । एक सुनते ही दौड़ा वही गया जहाँ श्रृंगी ऋषि छोकरों के साथ खेलता था । कहा-बंधु, तुम यहाँ क्या खेलते हो, कोई दुष्ट मरा हुआ काला नाग तुम्हारे पिता के कंठ में डाल गया है। सुनते ही श्रृंगी ऋषि के नैन लाल हो पाये, दात पीस पीस लगा थरथर कॉपने और क्रोध कर कहने कि कलियुग में राजा उपजे हैं अभिमानी धन के मद से अंधे हो गये हैं दुखदानी ।

अब मैं उसको दूहूँ श्राप, वही मीच पावैगा आप ।

ऐसे कह श्रृंगी ऋषि ने कौशिकी नदी का जल चुल्लू में ले, राजा परीक्षित को श्राप दिया कि वही सप् सातवे दिन तुझे डसेगा ।

इस भॉति राजा को सराप अपने बाप के पास आ गले से