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आनंद से चित दे सुने । तब तो राजा परीक्षित प्रेम से सुनने में और शुकदेवजी नेम से सुनाने ।

नौ स्कंध कथा जब मुनि ने सुनाई तब राजा ने कहा-दीनदयाल अब दया केर श्रीकृष्णावतार की कथा कहिये, क्योंकि हमारे सहायक और कुलपूज वे ही हैं। शुकदेक्जी बोले-राजा, तुमने मुझे बड़ा सुख दिया जो यह प्रसंग पूछा, सूनो मैं प्रसन्न हो कहता हूँ । यदुकुल में पहले भजमान नाम राजा थे तिनके पुत्र पृथिकु, पृथिकु के बिदूरथ, विनके सूरसेन जिन्हौने नौ खंड पृथ्वी जीत के जस पाया । उनकी स्त्री का नाम मरिष्या, विसके दस लड़के और पॉच लड़कियॉ, तिनमें बड़े पुत्र बसुदेव,जिनकी स्त्री' आठवे गर्भ में श्रीकृष्णचंदजी ने जन्म लिया। जब वसुदेवजी उपजे थे तब देवताओं ने सुरपुर में आनंद के बाजन बजाये थे और सूरसेन की पॉच पुत्रियों में सबसे बड़ी कुंती थी, जो पंडु को ब्याही थी, जिसकी कथा महाभारत मे गाई है, औ बसुदेवजी पहले तो रोहन नरेस की बेटी रोहन को ब्याह लाये, तिस पीछे सत्रह । जब अठारह पटरानी हुई तब मथुरा में कंस की बहन देवकी को ब्याहा । तहाँ आकाशबानी भई कि इस लड़की के आठवे गर्भ में कंस का काल उपजेगा । यह सुन कंस ने बहन बहनेऊ को एक घर में मुंद दिया और श्रीकृष्ण ने वहाँ ही जन्म लिया। इतनी कथा सुनते ही राजा परीक्षित बोले–महाराज, कैसे जन्म कंस ने लिया, किसने । विसे महा बर दिया और कौन रीति से कृष्ण उपजे आय, फिर किस विधि से गोकुल पहुँचे जाय, यह तुम मुझे कहो समझाय ।

श्रीशुकदेवजी वोले–मथुरापुरी का आहुक नाम राजा, तिनके दो बेटे, एक का नाम देवक दूसरा उग्रसेन । कितने एक दिन पीछे