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ब्रह्मा, रुद्र, इंद्र, सब देवताओं को साथ ले खड़े हो, हाथ जोड़ बिनती कर वेदस्तुति करने लगे―महाराजाधिराज आपकी महिमा कौन कह सके। मच्छ रूप हो वेद डूबते निकाले। कच्छ सरूप बन पीठ पर गिरि धारत किया। बाराह बन भूमि को दाँत पै रख लिया। बावन हो राजा बलि को छला। परशुराम औतार ले क्षत्रियों को भार पृथ्वी कश्यप मुनि को दी। रामावतार लिया तब महा दुष्ट रावन को बध किया। और जब जब दैत्य तुम्हारे भक्तों को दुख देते हैं तब तब आप विनकी रक्षा करते हैं। नाथ, अब केस के सताने से पुथ्वी अति व्याकुल हो पुकार करती है, विसकी बेग सुध लीजे, असुरों को मार साधो को सुख दीजे।

ऐसे गुन गाय देवताओं ने कहा तब आकाशबानी हुई सो ब्रह्मा देवताओं को समझाने लने, यह जो बानी भई सो तुम्हें आज्ञा दी है कि तुम सब देवी देवता ब्रजमंडल जाय मथुरा नगरी में जन्म लो, पीछे चार सरूप धर हरि भी औतार लेगे, बसुदेव के घर देवकी की कोख में, और बाल लीला कर नंद जसोदा को सुख देगे। इसी रीति से ब्रह्मा ने जब बुझाके कहा, तब तो सुर, मुनि, किन्नर, औ गंधर्व सब अपनी अपनी स्त्रियों समेत जन्म ले ले ब्रजमंडल में आये, यदुवंशी और गोप कहाये। और जो चारो बेद की ऋचाये थीं सो ब्रह्मा से कहने गईं कि हम भी गोपी हो। व्रज में औतार ले बासुदेव की सेवा करे। इतनी कह वे भी ब्रज में आई औ गोपी कहलाई। जब सब देवता मथुरापुरी में आ चुके तब क्षीरसमुद्र में हरि विचार करने लगे कि पहले तो लक्ष्मन होयँ बलराम, पीछे बासुदेव हो मेरा नाम, भरत द्युम्न, शत्रुघ्न, अनिरुद्ध और सीता रुक्मिनी का अवतार ले।