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इस भाँति मन में ठान बमदेव ने कंस से कहा-महाराज, तुम्हारी मृत्यु इनके पुत्र के हाथ न होयुगी, क्योकि मैने एक बात ठहराई है कि देवकी के जितने लड़के होंगे तितने मै तुम्हें ला दूंगा। यह बचन मैने तुमको दिया। ऐसी बात जब बसुदेव ने कही तब समझके कंस ने मान ली और देवकी को छोड़ कहने लगा―हे बसुदेब, तुमने अच्छा विचार किया जो ऐसे भारी पाप से मुझे बचा लिया। इतना कह बिदा दी, वे अपने घर गये।

कितने एक दिन मथुरा में रहते भये जब पहला पुत्र देवकी के हुआ, तब बसुदेव ले कंस पै गये और रोता हुआ लड़का आगे धर दिया। देखते ही कंस ने कहा―बसुदेव, तुम बड़े सतबादी हो, मैने सो आज जाना क्योकि तुमने मुझसे कपट न किया, निरमोही हो अपना पुत्र ला दिया। इससे डर नहीं है कुछ मुझे, यह बालक मैंने दिया तुझे। इतना सुन बालक ले दंडवत कर बेसुदेव जी तो अपने घर आये और किसी समै नारद मुनिजी ने जाय कंस से कहा―राजा, तुमने यह क्या किया जो बालक उलटा फेर दिया, क्या तुम नहीं जानते कि वासुदेव की सेवा करने को सब देवताओं ने ब्रज में आय जन्म लिया है और देवकी के आठवे गर्भ में श्रीकृष्ण जन्म ले सब राक्षसो को मार भूमि का भार उतारेगे। इतना कह नारद मुनि ने अठ लकीर खेच गिनवाई, जब आठही आठ गिनती में आई तब डरकर कंस ने लड़के समेत बसुदेव जी को बुला भेजा। नारद मुनि तो यो समझाय बुझाय चले गये और कंस ने बसुदेव से बालक ने मार डाला। ऐसे जब पुत्र होय तब वसुदेव ले आवे औ कंस मार डाले। इसी रीति से छः बालक मारे तब सातवे गर्भ में शेषरूप जो श्रीभगवान तिन्होने