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( १९ )

गर्भ अधूरा गया। बालक कुछी न पूरा भया। सुनतेही कंस घबराकर बोला कि तुम अब की बेर चौकसी करियो क्योंकि मुझे आठवेई गर्भ का डर है जो आकाशबानी कह गई है।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले―हे राजा, बलदेवजी तो यो प्रगटे और जब श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ में आए, तभी माया ने जो नंदू की नारि जसोदा के पेट में बास लिया। दोनों अधान से थीं कि एक पर्व में देवकी जमुना नहाने गई। वहाँ संयोग से जसोदा भी आन मिली तो आपस में दुख की चरचा चली। निदान जसोदा ने देवकी को वचन दे कहा कि तेरा बालक मै रक्खूँगी अपना तुझे दूँगी। ऐसे वचन दे यह अपने घर आई औ वह अपने। आगे जब कंस ने जाना कि देवकी को आठवाँ गर्भ रहा तब जा बसुदेव का घर घेरा। चारो ओर दैत्यो की चौकी बैठा दी और बसुदेव को बुलाकर कहा कि अब तुम मुझसे कपट मत कीजो, अपना लड़का ला दीजो। तब मैने तुम्हारा ही कहना मान लिया था।

ऐसे कह बसुदेव देवकी को बेड़ी औ हथकड़ी पहिराय, एक कोठे में मूँदकर ताले पर ताले दे निज मंदिर में आ मारे डर के उपास कर सो रहा, फिर भोर होतेही वहीं गया जहाँ बसुदेव देवकी थे। गर्भ का प्रकाश देख कहने लगा कि इसी यमगुफा में मेरा काल है, मार तो डालूँ, पर अपजस से डरता हूँ, क्योकि अति बलवान हो स्त्री को हनना जोग नहीं, भला इसके पुत्र ही को मारूँगा। यो कह बाहर आ, गज, सिंह, स्वाच और अपने बड़े बड़े जोधा वहाँ चौकी को रक्खे और आप भी नित्त चौकसी कर आवे, पर एक पल भी कल न पावे, जहाँ देखे तहाँ आठ पहर