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( २२ )

इसी बिरियाँ जसोदा के लड़की हुई है सो कंस को ला दो, अपने जाने का कारन कहता हूँ तो सुनो।

नंद जसोदा तप करयों, मोही सो मन लाय॥
देख्यो चाहत बाल सुख, रहौं कछू दिन जाय॥

फिर कंस को मार आन मिलूँगा, तुम अपने मन में धीर धरो। ऐसे बसुदेव देवकी को समझाय, श्रीकृष्ण चालक बन रोने लगे, और अपनी माया फैला दी, तब तो बसुदेव देवकी का ज्ञान गया औ जाना कि हमारे पुत्र भया। यह समझ दस सहस्र गाय सुन में संकल्प कर लड़के को गोद में उठा छाती से लगा लिया, उसका मुँह देख देख दोनो लंबी साँसें भर भर आपस में लगे कहने―जो किसी रीत से इस लड़के को भगा दीजे तो कंस पापी के हाथ से बचे। बसुदेव बोले―

बिधना बिन राखै नहि कोई। कर्म लिखा सोई फल होई॥
तब कर जोर देवकी कहै। नंद मित्र गोकुल में रहै॥
पीर जसोदा हरें हमारी। नारि रोहनी तहाँ तिहारी॥

इस बालक को वहाँ ले जाओ। यो सुन वसुदेव अकुलाकर कहने लगे कि इस कठिन बंधन से छूट कैसे ले जाऊँ। जो इतनी बात कही तो सब बेड़ी हथकड़ी खुल पड़ीं, चारो ओर के किवाड़ उधड़े गये, पहरुए अचेत नींद बस भये, सब तो बसुदेवजी ने श्रीकृष्ण को सूप में रख सिर पर धर लिया और झटपट ही गोकुल को प्रस्थान किया।

ऊपर बरसे देव, पीछे सिंह जु गुंंजरै।
सोचत है बसुदेव, जमुना देखि प्रवाह अति॥

नदी के तीर खड़े हो बसुदेव विचारने लगे कि पीछे तो सिंह