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पांचवा अध्याय

बालक का जन्म सुनते ही कंस डरता काँपता उठ खड़ा हुआ और खडग हाथ में ले गिरता पड़ती दौड़ा, छुटे बाल पसीने में डूबा धुकुड़ पुकुड़ करता जी बहन के पास पहुँचा। जब विसके हाथ से लड़की छीन ली तब वह हाथ जोड़ बोली―ऐ भैया, यह कन्या है भानजी तेरी, इसे मत मार यह पेटपोछन है मेरी। मारे हैं बालक तिनका दुख मुझे अति सताता है, बिन काज कन्या को मार पाप बढ़ाता है। कंस बोला―जीती लड़की न दूँगा तुझे, जो ब्याहेगा इसे सो मारेगा मुझे। इतना कह बाहर आ जो ही चाहे कि फिराय कर पत्थर पर पटके, तो ही हाथ से छूट कन्या आकाश को गई और पुकार के यह कह गई―अरे कंस, मेरे पटकने से क्या हुआ, तेरा बैरी कहीं जन्म ले चुका, अब तू जीता न बचेगा।

यह सुन कंस अछता पछता वहाँ आया जहाँ बसुदेव देवकी थे, आते ही विन के हाथ पॉव की हथकड़ी बेड़ी काट दीं और बिनती कर कहने लगा कि मैने बड़ा पाप किया जो तुम्हारे पुत्र मारे, यह कलंक कैसे छूटेगा, किस जन्म में मेरी गति होगी, तुम्हारे देवता झूठे हुए, जिन्होंने कहा था कि देवकी के आठवे गर्भ में लड़का होगा, सो न हो लड़की हुई। वह भी हाथ से छूट स्वर्ग को गई। अब दया कर भेरा दोष जी में मत रक्खो, क्योकि कर्म का लिखा कोई मेट नहीं सकता। इस संसार में आये से जीना, मरना, संयोग, बियोग मनुष का नहीं छुटता। जो ज्ञानी हैं सो मरना जीना समान ही जानते है और अभिमानी मित्र शत्रु कर