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छठा अध्याय

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले―राजा एक समै नंद जसोदा ने पुत्र के लिये बड़ा तप किया वहाँ श्रीनारायन ने आय बर दिया कि हम तुम्हारे यहाँ जन्म ले जायँगे। जब भादों बदी अष्टमी बुधवार को आधी रात के समै श्रीकृष्ण आये तब जसोदा ने जागतेही पुत्र को मुख देख नंद को बुला अति आनंद माना औ अपना जीतब सुप्फल जाना। भोर होतेही उठके नंदजी ने पंडित औ जोतिषियों को बुला भेजा। वे अपनी अपनी पोथी पत्रे ले ले आए। तिनको आसन दे दे आदर मान से बैठाए। विन्होने शास्त्र की बिधि से संवत्, महीना, तिथ, दिन, नक्षत्र, जोग, करन, ठहराय लगन बिचार, मुहूर्त साध के कहा―महाराज, हमारे शास्त्र के बिचार में तो ऐसा आता है कि यह लड़का दूसरा बिधाता हो, सब असुरों को मार ब्रज का भार उतार गोपीनाथ कहावेगा, सारा संसार इसीका जस गावेगा।

यह सुन नंदजी ने कंचन के सींग, रूपे के खुर, ताँबे की पीठ समेत दो लाख गौ पादंबर उड़ाय संकल्प की और अनेक दान कर ब्राह्मन को दछना दे दे असीस ले ले बिदा किया। तब नगर के सब मंगलामुखियों को बुलवाया। वे आय आय अपना अपना गुन प्रकाश करने लगे, बजंत्री बजाने, नृत्यक नाचने, गायक गाने, ढाढी ढाढिन जस बखानने और जितने गोकुल के गोप ग्वाल थे वे भी अपने नारियों के सिर पर दहेड़ियाँ लिवाये, भाँति भाँति के भेष बनाये, नाचते गाते नंद को बधाई देने आए। आतेही ऐसा