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( २८ )

तुम घर जाहु बेग अपने। कीने कंस उपद्रव घने॥
बालक ढूँढे मँगावे नीच। हुई साध परजा की मीच॥

तुम तो सब यहाँ चले आए हो और राक्षस ढूँढ़ते फिरते हैं। न जानिये कोई दुष्ट जाय गोकुल में उपाध मचावे। यह सुनते ही नंदजी अकुलाकर सबको साथ लिये सोचते मथुरा से गोकुल को चले।



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