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नवां अध्याय

श्री शुकदेवजी बोले―हे राजा, एक दिन बसुदेवजी ने गर्ग मुनि को जो बड़े जोतिषी औ यदुबंसियों के परोहित थे, बुलाकर कहा कि तुम गोकुल जा लड़के का नाम रख आओ।

गई रोहनी गर्ग सो, भयो पूत है ताहि।
किती आयु कैसो बली, कहा नाम ता आहि॥

और नंदजी के पुत्र हुआ है सो भी तुम्हें बुलाय गये हैं। सुनते ही गर्ग मुनि प्रसन्न हो चले औ गोकुल के निकट आ पहुँचे। तिसी समै किसी ने नंदजी से आ कहा कि यदुबंसियो के परोहित गर्ग मुनि जी आते है। यह सुन नंदजी आनंद से ग्वाल बाल संग कर भेट ले उठ धाए और पाटंबर के पाँवड़े डालते बाजे गाजे से ले आए, पूजा कर आसन पर बैठाय चरनामृत ले स्त्री पुरुष हाथ जोड़ कहने लगे―महाराज, बड़े भाग हमारे जो अपने दया कर दरसन दे पबित्र किया। तुम्हारे प्रताप से दो पुत्र हुए हैं, एक रोहनी के एक हमारे, कृपा कर तिनका नाम धरिये। गर्ग मुनि बोले―ऐसे नाम रखना उचित नहीं, क्यो कि जो यह बात फैले कि गर्ग मुनि गोकुल में लड़को के नाम धरने गये हैं। औ कंस सुन पावे तो वह यही जानेगा कि देवकी के पुत्र को बसुदेव के मित्र के यहाँ कोई पहुँचाय आया है इसी लिये गर्ग परोहित गया है। यह समझ मुझे पकड़ मँगावेगा और न जानिये तुम पर भी क्यों उपाध लावे। इससे तुम फैलाव कुछ मत करो, चुपचाप घर में नाम धरवा लो।