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दसवाँ अध्याय

एक दिन दही मथने की बिरियाँ जान, भोरही नंदरानी उठी और सब गोपियों को जगाय बुलाया, वे आय घर झाड़, बुहार, लीप, पोत अपनी अपनी मथनियाँ ले ले दुध मथने लगीं। तहाँ नदमहरि भी एक बड़ा सा कोरा चरुआ ले ईढुए पर रख चौक बिछी नेती और रई मँगाय, टटकी टटकी दहैडियाँ बाछ राम कृष्ण के लिये बिलोचन बैठी।

तिस समै तंद के घर में ऐसा शब्द दही मथने को हो रहा था कि जैसे मेघ गरजता हो। इतने में कृष्ण जागे तो रो रो भा मा कर पुकारन लागे। जब विनका पुकारना किसूने में सुना तब अपही जसोदी के निकट आए, औ आँखें डबडबाय अनमने हो ठुसक ठुसक तुतलाय कहने लगे कि मा तुझे कै बेर बुलाया पर मुझे कलेऊ देन न आई। तेरा काज अब तक नहीं निबड़ा। इतना कह मचल पड़े। रइ चरुए से निकाल दोनों हाथ डाल लगे माखन काढू काढ़ फेंकने, अंग लथेड़ने औ पाँव पटक पटक ऑचल खेंच खेंच रोने। तब नंदरानी घबराय झुँझलाय के बोली―बेटा यह क्या चाल निकाली,

चल उठ तुझे कलेऊ दूँ। कृष्ण कहे अब मैं नहिं लूँ॥
पहिले क्यो नहि दीना माँ। अब तो मेरी लेहै बला॥

निदान जसोदा ने फुसलाय प्यार से मुँह चूँब गोद में उठा लिया और दधि माखन रोटी खाने को दिया। हरि हँस हँस खाते थे