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नंदमहरि आँचल की ओट किये खिला रही थी, इसलिये कि मत किसी की दीठि लगे।

इस बीच एक गोपी ने आ कहा कि तुम तो यहाँ बैठी हो वहाँ चूल्हे पर से सब दूध उफन गया। यह सुनते ही झट कृष्ण को गोद से उतार उठ धाई और जाके दूध बचाया। यहाँ कान्ह दही मही के भाजन फोड़, रई तोड़, माखन भरी कमोरी ले, ग्वाल बालो में दौड़ आए। एक उलूखल औधा धरा पाया तिसपर जा बैठे औ चारों ओर सखाओं को बैठाय लगे आपस में हँस हँस बाँट बाँद माखन खाने।

इसमें जसोदा दूध उतार आय देखे तो आँगन औ तिवारे में दही मही की कीच हो रही है। तब तो सोच ससझ हाथ में छड़ी ले निकली और ढूँढ़ती हूँढती वहाँ आई जहाँ श्रीकृष्ण मंडली बनाए माखन खाय खिलाय रहे थे। जाते ही पीछे से जो कर धरा, तो हरि माँ को देखते ही रोकर हा हा खाय लगे कहने कि मा, गोरस किसने लुढाया मैं नहीं जानूँ, मुझे छोड़ दे। ऐसे दीन बचन सुन जसोदा हँसकर हाथ से छड़ी डाल और आनंद में मगन हो रिस के मिस कंठ लगाय घर लाय कृष्ण को उलूखल से बाँधने लगी। तब श्रीकृष्ण ने ऐसा किया कि जिस रस्सी से बाँध वहीं छोटी होय। जसोदा ने सारे घर की रस्सियाँ मँगाई तौ भी बाँधे न गये। निदान मा को दुखित जान आपही बँधाई दिये। नंदरानी बाँध गोपियों को खोलने की सोह दे फिर घर की टहल करने लगी।