पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/९

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अध्याय न देकर 'अथ कथा अरंभ' शीर्षक दिया गया है। पाठ भी बहुत शुद्ध है, पर इसे शुद्ध पढ़ने में वही सफल हो सकते है, जो उर्दू अच्छी तरह जानते हुए हिंदी भी अच्छी जानते हो। कहीं कहीं रूपांतरकार ने क्रिया पद को आगे पीछे हटाकर वाक्य को ठीक कर दिया है। इससे भी मिलान करने में सहायता ली गई है।

प्रेमसागर की कथा कृष्णालीला अति प्रसिद्ध है और इस विषय की पुस्तको को प्रत्येक हिंदू अनेक बार आवृति कर लेने पर भी बड़े चाव से पढ़ा करना है। श्रीमद्भागवत के दृशम स्कंध में कृष्णलीला विस्तारपूर्वक नब्बे अध्यायों में कही गई है जिसका चतुर्भुज मिश्र ने दोहे चौपाइयों में अनुवाद किया था। इसी अनुवाद के आधार पर लल्लूजीलाल ने नब्बे ही अध्यायों में यह ग्रंथ खड़ी बोली में तैयार किया था। परंतु ब्रज भाषा का कितना मिश्रण इस ग्रंथ में रह गया है, वह इसके किसी पृष्ठ के पढ़ने से मालूम हो सकता है। ब्रज भाषा का मेल तो जो कुछ है सो ठीक ही है, कविता की तुकबंदी ने भी पीछा नहीं छोड़ा है और स्थान स्थान पर वह अपना स्वाद चखाती जाती है, जैसे-वह वृषभ रूप बनकर आया है नीच, हमसे चाहता है अपनी मीच ।

यह वह समय था जब पद्य से गद्य का प्रादुर्भाव हो रहा था इसीसे छोटे छोटे वाक्यो में इस तुकबंदी से पीछा नहीं छूटा था। दूसरा यह भी कारण था कि जिस ग्रंथ के आधार पर यह पुस्तक लिखी गई थी, वह भी ब्रजभाषा के पद्यो में था। इस से यह न समझना चाहिए कि इसके पहले गद्य के ग्रंथ नहीं थे।


  • प्रथम संस्करण मे इसका उल्लेख भूल से नहीं हुआ था।