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बारहवां अध्याय

श्रीशुकदेव मुनि बोले―राजा, जब वे दोनों तरु गिरे तब तिनका शब्द सुन नंदरानी घबरा कर दौड़ी वहाँ आई जहाँ कृष्ण को उलूखल से बाँध गई थी और विनके पीछे सब गोपी ग्वाल भी आए। जद कृष्ण को वहाँ न पाया तद व्याकुल हो जसोदा मोहन मोहन पुकारती औं कहती चली। कहाँ गया बाँधा था माई, कहीं किसी ने देखा मेरा कुँअर कन्हाई। इतने में सोहीं से आ एक बोली ब्रजनारी कि दो पेड़ गिरे तहाँ बचे मुरारी। यह सुन सब आगे जाय देखें तो सचही वृक्ष उखड़े पड़े है और कृष्ण तिनके बीच ओखली से बँधे सुकड़े बैठे हैं। जाते ही नंदमहरि ने उलूखल से खोल कान्ह को रोकर गले लगा लिया, और सब गोपियाँ खरा जाने लगी चुटकी ताली दे दे हँसाने। जहाँ नंद उपनंद आपस में कहने लगे कि ये जुगान जुग के रूख जमे हुए कैसे उखड़ पड़े यह अचंभा जी में आता है, कुछ भेद इसका समझा नहीं जाता। इतना सुनके एक लड़के ने पेड़ गिरने की व्योरा जो का तो कहा, पर किसीके जी मे न आया। एक बोला―ये बालक इस भेद को क्या समझें। दूसरे ने कहा―कदाचित यही हो, हरि की गति कौन जाने। ऐसे अनेक अनेक भाँति की बातें कर श्रीकृष्ण को लिये सब आनंद से गोकुल आये, तब नंदजी ने बहुत सी दान पुन्य किया।

कितने एक दिन बीते कृष्ण का जन्म दिन आया, तो जसोदा रानी ने सब कुटुम्ब को नोत बुलाया और मंगलाचार कर बरस