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वे जाय जमुना के तीर बछड़े चराने लगे और ग्वाल बालों में खेलने कि इतने में कंस को पठाया कपट रूप किये बच्छासुर आया। विसे देखते ही सब बछड़े डर जिधर तिधर भागे, तब श्रीकृष्ण ने बलदेवजी को सेन से जताया कि भाई, यह कोई राक्षस आया। आगे जो वह चरता चरता घात करने को निकट पहुँचा तो श्रीकृष्ण ने पिछले पाँव पकड़ फिराय कर ऐसा पटका कि विसका जी घर से निकल सटका।

बुच्छासुर का मरना सुन कंस ने बकासुर को भेजा। वह ब्रंदावन में आय अपनी घात लगाय, जमुना के तीर पर्वत सम जा बैठा। विसे देख मारे भय के ग्वाल बाल कृष्ण से कहने लगे कि भैया, यह तो कोई राक्षस बगुला बने आया है, इसके हाथ से कैसे बचेगे।

ये तो इधर कृष्ण से यों कहते थे और उधर वह जी में यह विचारता था कि आज इसे बिना मारे न जाऊँगा। इतने में जो श्रीकृष्ण उसके निकट गये तो विसने इन्हें चोच में उठाय मुँह मुंद लिया। ग्वाल बाल ब्याकुल हो चारों ओर देख देख रो रो पुकार पुकार लगे कहने―हाय हाय, यहाँ तो हलधर भी नहीं है, हम जसोदा से क्या जाय कहेंगे। इनको अति दुखित देख श्रीकृष्ण ऐसे तत्ते हुए कि वह मुख में न रख सका। जो विसने इन्हें उगला तो इन्होने उसे चोच पकड़ ठोट पाँव तले दबाय चीर डाला और बछड़े घेर सखाओं को साथ हँसते खेलते घर आए।

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