पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४६ )


सब जल मरते है। विनकी पुकार सुनते ही आतुर हो श्रीकृष्ण भी उसके मुख में बड़े गये। विनने प्रसन्न हो मुँह मुंद लिया। तहाँ श्रीकृष्ण ने अपना शरीर इतना बढ़ाया कि विसका पेट फट गया। सब बछरू औ ग्वाल बाल निकल पड़े, तिस समय आनंद कर देवताओं ने फूल औ अमृत बरसाय सबकी तपत हर ली। तब ग्वाल बाल श्रीकृष्ण से कहने लगे कि भैया, इस असुर को मार आज तो तूने भले बचाये, नहीं सब मर चुके थे।