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तब ग्वालन सो कहत कन्हाई। तुम सब जेवन रहियो भाई।
जिन कोऊ उठै करै औसेर। सब के बछरा ल्याऊँ घेर॥

ऐसे कह कितनी एक दूर बन में जाय जब जाना कि यहाँ से बछड़े ब्रह्मा हर ले गया, तब श्रीकृष्ण वैसे ही और बनाय लाये। यहाँ आय देखे तो ग्वाल बालों को भी उठाथ ले गया है। फिर इन्होने वे भी जैसे थे तैसे ही बनाये, और साँझ हुई जान सबको साथ ले ब्रंदावन आये। ग्वालबाल अपने अपने घर गये पर किसी ने यह भेद न जाना कि ये हमारे बालक औ बछड़े नहीं, बरन और दिन दिन माया बढ़ती चली।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेव बोले―महाराज, वहाँ ब्रह्मा ग्वाल बाल बछड़ों को ले जाय एक पर्चत की कंदरा में भर, विसके मुँह पर पत्थर की सिला धर भूल गया। और यहाँ श्रीकृष्णचंद नित नई नई लीला करते थे। इसमें एक वर्ष बीत गया तद ब्रह्मा को सुध हुई तो मन में कहने लगा कि मेरा तो एक पल भी नहीं हुआ पर नर का बरष हो गया, इससे अब चल देखा चाहिये कि ब्रज में ग्वाल बाल बछड़ो बिन क्या गति भई।

यह बिचार उठकर वहाँ आया जहाँ कंदरा मैं सबको मुँद गया था। सिला उठाय देखे तो लड़के औ बछड़े घोर निद्रा में सोये पड़े है। वहाँ से चल ब्रंदावन में आय बालक औ बछरू सुब जों के तो देख अचंभे हो कहने लगा―कैसे ग्वाल बच्छ यहाँ आये, कै ये कृष्ण नये उपजाये। इतना कह फिर कंदरा को देखने गया। जितने में वह वहाँ से देख कर आवे, तितने बीच यहाँ श्रीकृष्णचंद ने ऐसी माया की कि जित्ते ग्वाल बाल औ बछड़े