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प्रेमाश्रम


ही हमारा उनमें आत्मिक सम्बन्ध हो जाता है।

किन्तु हा दुर्दैव। ज्ञानशकर को विपद-चिन्ताओ का यहीं तक अन्त न था। अभी तक उनकी स्थिति एक आक्रमणकारी सेना की-सी थी। अपने घर का कोई खटका न था। अब दुर्भाग्य ने उनके घर पर छापा मारा। उनकी स्थिति रक्षाकारिणी सेना की सी हो गयी। उनके बड़े भाई प्रेमशकर कई वर्ष से लापता थे। ज्ञानशकर को निश्चय हो गया था कि वह अब ससार में नहीं हैं। फाल्गुन का महीना था। अनायास प्रेमशकर का एक पत्र अमेरिका से आ पहुँचा कि मैं पहली अप्रैल को बनारस पहुँच जाऊँगा। यह पत्र पा कर पहले तो ज्ञानशकर प्रेमोल्लास में मग्न हो गये। इतने दिनों के वियोग के बाद भाई में मिलने की आशा ने चित्त को गद्गद् कर दिया। पत्र लिए हुए विद्या के पास आ कर यह शुभ समाचार सुनाया। विद्या बोली, धन्य भाग। भाभी जी की मनोकामना ईश्वर ने पूरी कर दी। इतने दिनों कहाँ थे?

ज्ञान -- वही अमेरिका में कृषिशास्त्र का अभ्यास करते रहे। दो साल तक एक कृषिशाला में काम भी किया है।

विद्या -- तो आज अभी १५ तारीख है। हम लोग कल परसो तक यहाँ से चल दे। ज्ञानशकर ने केवल इतना कहा, 'हाँ, और क्या' और बाहर चले गये। उनकी प्रफुल्लता एक ही क्षण में लुप्त हो गयी थी और नयी चिन्ताएँ आँखों के सामने फिरने लगी थी, जैसे कोई जीर्ण रोगी किसी उत्तेजक औषधि के अमर से एक क्षण के लिए चैतन्य हो कर फिर उमी जीर्णावस्था में विलीन हो जाता है। उन्होंने अब तक जो मनसूबे बाँधे थे, जीवन का जो मार्ग स्थिर किया था, उसमें अपने सिवा किसी अन्य व्यक्ति के लिए जगह न रखी थी। वह सब कुछ अपने लिए चाहते थे। अब इन व्यवस्थाओं मे दो परिवारों का निर्वाह होना कठिन था। लखनपुर के दो हिस्से करने पड़ेंगे! ज्यो-ज्यो वह इस विषय पर विचार करते थे, समस्या और भी जटिल होती जाती थी, चिन्ताएँ और भी विषम होती जाती थी। यहाँ तक कि शाम होते-होते उन्हें अपनी अवस्था असह्य प्रतीत होने लगी। वे अपने कमरे में उदास बैठे हुए थे कि राय साहब आ कर बोले, तुमने तो अभी कपड़े भी न पहने, क्या सैर करने न चलोगे?

ज्ञान -- जी नही, आज जी नहीं चाहता।

राय -- कैसरबाग में आज बैड होगा। हवा कितनी प्यारी है!

ज्ञान -- मुझे आज क्षमा कीजिए।

राय -- अच्छी बात है, मैं भी न जाऊँगा। आजकल कोई लेख लिख रहे हो या नहीं?

ज्ञान -- जी नहीं, इधर तो कुछ नहीं लिखा।

राय -- तो अब कुछ लिखो। विषय और सामग्री मैं देता हूँ। सिपाही की तलवार मे मोरचा न लगना चाहिए। पहला लेख तो इस साल के वजट पर लिख दो और दूसरा गायत्री पर।

ज्ञान -- मैंने तो आजकल कोई वजट सम्बन्धी लेख आद्योपान्त पढ़ा नही, उस पर कलम क्योकर उठाऊँ।