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प्रेमाश्रम

भी न सह सका। आपको देख कर चित्त प्रसन्न हो गया। सारा संसार ईश्वर का विराट् स्वरूप हैं। जिसने संसार को देख लिया, उसने ईश्वर के विराट-स्वरूप का दर्शन कर लिया। यात्रा अनुभूत ज्ञान प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है। कुछ जलपान के लिए मगाऊँ?

प्रेमजी नहीं, अभी जलपान कर चुका हैं।

राय साहब--समझ गया, आप भी जवानी में बूढ़े हो गये। भोजन-आहार का यही पथ्यापथ्य-विचार बुढ़ापा है। जवान वह है जो भोजन के उपरान्त फिर भोजन करे, ईंट-पत्थर तक भक्षण कर ले। जो एक चार जलपान करके फिर नहीं खा सकता, जिसके लिए कुम्हड़ा वादी हैं, करेला गर्म, कटहल गरिष्ठ, उसे मैं बूढ़ा ही समझता हूँ। मैं सर्वभक्षी हूँ और इसी का फल है कि साठ वर्ष की आयु होने पर भी मैं जवान हूँ।

यह कह कर राय साहब ने लौटा मुँह से लगाया और कई घूट गट-गट पी गये, फिर प्याले में से कई चमचे निकाल कर खाये और जीभ चटकाते हुए बोले, यह न समझिए कि मैं स्वादेन्द्रिय का दास हैं। मैं इच्छाओं का दास नहीं, स्वामी बन कर रहता हूँ। यह दमन करने का साधन मात्र हैं। तैराक वह है जो पानी में गोते लगाये। योद्धा वह है जो मैदान में उतरे। बवा से भाग कर बवा से बचने का कोई मूल्य नहीं। ऐसा आदमी बवा की चपेट में आ कर फिर नहीं बच सकता। वास्तव में रोग-विजेता वही है जिसकी स्वाभाविक अग्नि, जिसकी अन्तरस्थ ख्वाला, रोग-कीट को भस्म कर दें। इस लौटे में आग की चिनगारियाँ हैं, पर मेरे लिए शीतल जल है। इस प्याले में बहू पदार्थ है, जिसको एक चमचा किसी योगी को भी उन्मत्त कर सकता हूँ, पर मेरे लिए सूखे साग के तुल्य है। आजकल यही मेरा आहार है। मैं गर्मी में आग खाता हूँ और आग ही पीता हूँ। मैं शिव और शक्ति का उपासक हूँ। विष को दूध-धी समझता हूँ। जाड़े में हिमकणों का सेवन करता हूँ और हिमालय की हवा खाता हूँ। हमारी आत्मा ब्रह्म का ज्योतिस्वरूप है। उसे मैं देश तथा इच्छाओं और चिन्ताओं से मुक्त रखना चाहता हूँ। आत्मा के लिए पूर्ण अखण्ड स्वतंत्रता सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। मेरे किसी कामे का कोई निदिष्ट समय नहीं। जो इच्छा होती है करता हूँ। आपको कोई कष्ट तो नहीं है, आराम से बैठिए।

प्रेम-बहुत आराम से बैठा हूँ।

राय साहब--आप इस मूर्ति को देख कर चौंकते होंगे। पर मेरे लिए यह मिट्टी के खिलौने हैं। विषयासक्त आँखें इनके रूप लावण्य पर मिटती हैं, मैं उस ज्योति को देखता हूँ जो इनके घट में व्यापक है। बाह्यरूप कितना ही सुन्दर क्यों न हो, मुझे विचलित नहीं कर सकता। वह भकुए हैं, जो गुफाओं और कन्दराओं में बैठ कर तप और ध्यान के स्वाँग भरते हैं। वे कायर हैं, प्रलोभनों से मुँह छिपानेवाले, तृष्णा से जान बचानेवाले। वे क्या जानें कि आत्म-स्वातंत्र्य क्या वस्तु है? चित की वृद्धती और मनोबल का उन्हें अनुभव ही नहीं हुआ। घह सूखी पत्तियाँ हैं जो हवा के एक