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प्रेमाश्रम

झोके से जमीन पर गिर पड़ती है। योग कोई दैहिक क्रिया नहीं है, आत्मशुद्धि, मनोबल और इन्द्रिय-दमन ही सच्चा योग, सच्ची तपस्या है। वासनाओं में पड़ कर अविचलित रहना ही सच्चा वैराग्य है। उत्तम पदार्थों का सेवन कीजिए, मधुर गाने का आनन्द उठाइए, सौन्दर्य की उपासना कीजिए; परन्तु मनोवृत्तियों का दास न बनिए; फिर आप सच्चे वैरागी हैं। (दोनों पहलवानो से) पण्डा जी! तुम बिलकुल बुद्धू ही रहे। यह महाशय अमेरिका का भ्रमण कर आये है, हमारे दामाद हैं। इन्हें कुछ अपनी कविता सुनाओ, खूब फड़कते हुए कवित्त हों।

दोनों पंडे खसे हो गये और स्वर मिला कर एक कवित्त पढ़ने लगे। कवित्त क्या था, अपशब्दों का पोथा और अश्लीलता का अविरल प्रवाह था। एक-एक शब्द बेहयायी और बेशर्मी में डूबा हुआ था। मुँहफट भाँड भी लज्जास्पद अगो को ऐसा नग्न, ऐसा घृणोत्पादक वर्णन न कर सकते होंगे। कवि ने समस्त भारतवर्ष के कबीर और फाग का इत्र, समस्त कायस्थ समाज की वैवाहिक गजलों का सत, समस्त भारतीय नारि-वृन्द की प्रथा-प्रणीत गालियों का निचोड़ और समस्त पुलिस विभाग के कर्मचारियों के अपशब्दों का जौहर खींच कर रख दिया था, और वह गन्दे कवित्त इन पंडों के मुँह से ऐसी सफाई से निकल रहे थे, मानो फूल झड़ रहे हैं। राय साहब मूर्तिवत् बैठे थे, हंसी का तो कहना ही क्या, ओठों पर मुस्कराहट का चिह्न भी न था। तीन वेश्याओं ने शर्म से सिर झुका लिया, किन्तु प्रेमशंकर हँसी को न रोक सके। हँसते-हँसते उनके पेट में बल पड़ गये।

पंडों के चुप होते ही समाजियों का आगमन हुआ। उन्होंने अपने साज मिलाये, तबले पर थाप पड़ी, सारगियों ने स्वर मिलाया और तीनों रमणियाँ एक ध्रुपद अलापने लगी। प्रेमशंकर को स्वर-लालित्य का वही आनन्द मिल रहा था जो किसी गॅवार को उज्ज्वल रत्नों के देखने से मिलता है। इस आनन्द में रसज्ञता न थी; किन्तु मर्मज्ञ राय साहब मस्त हो-हो कर झूम रहे थे और कभी-कभी स्वयं गाने लगते थे।

आधी रात तक मधुर अलाप की ताने उठती रही। जब प्रेमशंकर ऊँच-ऊँध कर गिरने लगे तब सभा विसर्जित हुई। उन्हें राय साहब की बहुक्षता और प्रतिभा पर आश्चर्य हो रहा था। इस मनुष्य में कितना बुद्धि-चमत्कार, कितना आत्मबल, कितनी सिद्धि, कितनी सजीवता है और जीवन का कितना विलक्षण आदर्श।

दूसरे दिन प्रेमशंकर सो कर उठे तो आठ बजे थे। मुंह-हाथ धो कर बरामदे में टहलने लगे कि सामने से राय साहब एक मुश्की घोड़े पर सवार आते दिखायी दिये। शिकारी वस्त्र पहने हुए थे। कन्धे पर बन्दुक थी। पीछे-पीछे शिकारी कुत्तों का शेड चला आ रहा था। प्रेमशंकर को देख कर बोले, आज किसी भले आदमी का मुंह देखा था। एक बार भी खाली नहीं गया। निश्चय कर लिया था कि जलपान के समय तक लौट जाऊँगा। आप कुछ अनुमान कर सकते हैं कितनी दूर से आ रहा हूँ? पूरे बीस मील का धावा किया है। तीन घंटे से ज्यादा कभी नहीं सोता। मालूम है न, आज तीन बजे से जलसा शुरू होगा।