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प्रेमाश्रम

माँगनी चाहिए, अपने बल पर यह बोझ मैं नही सँभाल सकता। थोड़ी सी जमीन मिल जाती, मैं स्वयं कुछ पैदा करने लगता तो यह दशा न रहती। जमीन तो यह बहुत कम है। हाँ, पचास बीधे का यह ऊसर अलवत्ता है, लेकिन जमींदार साहब से सौदा पटना कठिन हैं। वह ऊसर के लिए २०० रुपये बीधे नजराना माँगेंगे। फिर इसकी रेह निकालने और पानी के निकास के लिए नालियाँ बनाने में हुजारो को खर्च है। क्या बताऊ, ज्ञानू ने मेरे सारे मसूबे चौपट कर दिये, नहीं लखनपुर यहाँ से कौन बहुत दूर था? मैं पन्द्रह-बीस बीघे की सीर भी कर लेता तो मुझे किसी की मदद की दरकार न होती।

यह इन्हीं विचारों में डूबें थे कि सामने से एक एक्का आता हुआ दिखायी दिया। पहले तो कई आदमियों ने एक्केवान को ललकारा। क्यों खेत में एक्का लाता है? आँखें फूटी हुई हैं? देखता नहीं, खेत बोया हुआ है। पर जब एक्का प्रेमशंकर के झोपड़े की ओर मुडा तो लोग चुप हो गये। इस पर लाला प्रभाशंकर और उनके दोनों लड़के पद्मशंकर और तेजशंकर बैठे हुए थे। प्रेमशंकर ने दौड़ कर उनका स्वागत किया। प्रभाशंकर ने उन्हें छाती से लगा लिया और पूछा, अभी तुम्हारा आदमी ज्ञानू का जवाब ले कर तो नहीं आया?

प्रेम-- जी नहीं, अभी तो नहीं आया, देर बहुत हुई।

प्रभा--मेरे ही हाथ बाजी रही। मैं उसके एक घंटा पीछे चला हूँ। यह लो, बडी बहू ने यह लिफाफा और यह सन्दूकची तुम्हारे पास भेजी है। मगर यह तो बताओ, यह वनवास क्यों कर रहे हो? तुम्हारे एक छोड़ दो-दो घर है। उनमें न रहना चाहो तो तुम्हारे कई मकान किराये पर उठे हुए हैं, उनमें से जिसे कहो खाली करा दें। आराम से शहर में रहो। तुम्हें इस दशा में देख कर मेरा हृदय फटा जाता है। यह फूस-का झोपड़ा, बीहड़ स्थान, न कोई आदमी ने आदमजाद मुझसे तो यहाँ एक क्षण भी न रहा जाये। हफ्तो घर की सुधि नहीं लेते। मैं तुम्हे यहाँ न रहने दूंगा। हम तो महल में रहे और तुम यो वनवास करो। (सजल नेत्र हो कर) यह सब मेरा दुर्भाग्य है। मेरे कलेजे के टुकड़े हुए जाते हैं। भाई साहब जब तक जीवित रहे, मैं अपने ऊपर गर्व करता था। समझता था कि मेरी बदौलत एका बना हुआ है। लेकिन उनके उठते ही घर की भी उठ गयी। मैं दो-चार साल भी उस मैल को न निभा सका। वह भाग्यशाली थे, मैं अभागा हूँ और क्या कहूँ।

प्रेमशंकर ने बड़ी उत्सुकता से लिफाफा खोला और पढ़ने लगे। लाला जी की तरफ उनका ध्यान न था।

'प्रिय प्राणपति, दासी का प्रणाम स्वीकार कीजिए। आप जब तक विदेश में थे, वियोग के दुख को धैर्य के साथ सहती रही, पर आपका यह एकान्त निवास नहीं सहा जाता। मैं यहाँ आपसे बोलती न थी, आपसे मिलती न थी, पर आपकी आँखो से देखती तो थी, आपकी सेवा तो कर सकती थी। आपने यह सुअवसर भी मुझसे छीन लिया। मुझे तो संसार की हँसी का डर था, आपको भी संसार की हँसी का डर है? मुझे आपसे