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प्रेमाश्रम

पहनें, लेकिन खाने पहनने से दूसरों को क्या सुख होगा ? तुम्हारे घन और सम्पत्ति से दूसरे क्या लाभ उठायेंगे ? हमने भोग-विलास में जीवन नही बिताया। वह कुल-मर्यादा की रक्षा थी। विलासिता यह है, जिसके पीछे तुम उन्मत्त हो। हमने जो कुछ किया नाम के लिए किया। घर में उपवास हो गया है, लेकिन जब कोई मेहमान आ गया तो उसे सिर और आँखो पर लेते थे। तुमको बस अपना पेट भरने की, अपने शौक की, अपने विलास की धुन है। यह जायदाद बनाने के नहीं बिगाड़ने के लक्षण है। अंतर इतना ही है कि हमने दूसरों के लिए बिगाड़ा, तुम अपने लिए बिगाड़ोगे।

मुसीबत यह थी कि ज्ञानशंकर की स्त्री विद्यावती भी इन विचारो में अपने पति से सहमत न थी। उसके विचार बहुत-कुछ लाला प्रभाशंकर से मिलते थे। उसे परमार्थ पर स्वार्थ से अधिक श्रद्धा थी। उसे बाबू ज्ञानशकर को अपने चाचा से वाद-विवाद करते देख कर खेद होता था और अवसर मिलने पर वह उन्हें समझाने की चेष्टा करती थी। पर ज्ञानशकर उसे झिड़क दिया करते थे। वह इतने शिक्षित हो कर भी स्त्री का आदर उससे अधिक न करते थे, जितना अपने पैर के जूतों का। अतएव उनका दाम्पत्य जीवन भी, जो चित्त की शाति का एक प्रधान साधन है, सुखकर न था।


मनोहर अक्खडपन की बातें तो कर बैठा, किंतु जब क्रोध शांत हुआ तो मालूम हुआ कि मुझसे बड़ी भूल हुई। गाँववाले सब के सब मेरे दुश्मन हैं। वह इस समय चौपाल में बैठे मेरी निंदा कर रहे होगे। कारिंदा न जाने कौन-सा उपद्रव मचायें । बेचारे दुर्जन की बात की बात मे मटिया मैट कर दिया, तो फिर मुझे बिगाड़ते क्या देर लगती है। मैं अपनी जबान से लाचार हैं। कितना ही उसे बस में रखना चाहता हैं पर नही रख सकता। यही न होता कि जहाँ और सव लेना-देना है वहाँ दस रुपये और हो जाते, नक्कू तो न बनता।

लेकिन इन विचारो ने एक क्षण में फिर पलटा खाया। मनुष्य जिस काम को हृदय से बुरा नहीं समझता, उसके कुपरिणाम का भय एक गौरवपूर्ण धैर्य की शरण लिया करता है। मनोहर अब इस विचार से अपने को शाति देने लगा, मैं बिगड़ जाऊँगा तो बला से, पर किसी की घौंस तो न सहूँगा, किसी के सामने सिर तो नीचा नहीं करता। जमीदार भी देख लें कि गाँव मे सब के सब भाँड़ ही नहीं है। अगर कोई मामला खड़ा किया तो अदालत में हाकिम के सामने सारा भंडा फोड़ दूंँगा, जो कुछ होगा, देखा जायेगा।

इसी उधेडवुन में वह भोजन करने लगा। चौके में एक मिट्टी के तेल का चिराग जल रहा था; किंतु छत में धुआंँ इतना भरा हुआ था कि उसका प्रकाश मद पड़ गया था। उसकी स्त्री बिलासी ने एक पीतल की थाली में बथुए की भाजी और जौ की कई मोटी-मोटी रौटियाँ परस दी। मनोहर इस भाँति रोटियौ तोड़-तोड़ मुंँह में रखता