प्रेम-क्या जागे, मैं तो रोटियों से ही संतुष्ट हो जाता हूँ। कभी-कभी तो मैं शाक या दाल भी नहीं बनाता। सूखी रोटियां बहुत मीठी लगती है। स्वास्थ्य के विचार से भी रूखी-सूखा भोजन उत्तम है।
प्रभा- यह सब नये जमाने के ढकोसले हैं। लोगों की पाचन शक्ति निर्बल हो गयी है। इसी विचार से अपने को तस्कीन दिया करते है। मैंने तो आजीवन चटपटा भोजन किया है, पर कभी कोई शिकायत नहीं हुई।
भोजन करने के बाद कुछ इधर-उधर की बातें होने लगी। लाला जी थके थे, सो गये, किन्तु दोनो लड़को को नींद नहीं आती थी। प्रेमशंकर बोले, क्यों तेजशंकर, क्या नींद नहीं आती? मैट्रिक में हो न? इसके बाद क्या करने का विचार है?
तेजशंकर-मुझे क्या मालुम? दादा जी की जो राय होगी, वही करूंगा?
प्रेम-और तुम क्या करोगे पद्मशंकर?
पद्म---मेरा तो पढ़ने में जी नहीं लगता। जी चाहता है, साधु हो जाऊँ।
प्रेम--(मुस्करा कर) अभी से?
पद्य जी हाँ, खूब पहाड़ो पर विचरूंगा। दूर-दूर के देशो की सैर करूंगा। भैया भी तो साधु होने को कहते है।
प्रेम--तो तुम दोनों साधु हो जाओगे और गृहस्थी का सारा बोझ चाचा साहब के सिर पर छोड़ दोगे?
तेज—मैंने कब साधु होने को कहा पद्म? झूठ बोलते हो।
पद्म–रोज तो कहते हो, इस वक्त लजा रहे हो।
तेज़-बड़े झूठे हो।
पद्म-अभी तो कल ही कह रहे थे कि पहाड़ों पर जा कर योगियों से मन्त्र जगाना सीखेंगे। ,
प्रेम--मन्त्र जगाने से क्या होगा?
पद्म-वाह! मन्त्र में इतनी शक्ति है कि चाहे तो अभी गायब हो जाये, जमीन मे गड़ा हुआ धन देख लें। एक मन्त्र तो ऐसा है कि चाहे तो मुरदों को जिला दें। बस, सिद्धि चाहिए। खूब चैन रहेगा। यहां तो बरसो पढ़ेगे, तब जा कर कहीं नौकरी मिलेगी। और वहाँ तो एक मन्त्र भी सिद्ध हो गया तो फिर चाँदी ही चांदी है।
प्रेम-क्यों जी तेजू, तुम भी इन मिथ्या बातों पर विश्वास करते हो?
तेज---जी नहीं, यह पद्म यों ही वाही-तबाही बकता फिरता है, लेकिन इतना कह सकता हूँ कि आदमी मन्त्र जगा कर बड़े-बड़े काम कर सकता है। हाँ, डर न जाय, नहीं तो जान जाने का डर रहता है।
प्रेम-यह सब गपोड़ा है। खेद है, तुम विज्ञान पढ़ कर इन गपोड़ों पर विश्वास करते हो। संसार में सफलता का सबसे जागता हुआ मन्त्र अपना उद्योग, अध्यवसाय और दृढ़ता है, इसके सिवा और सब मन्त्र झूठे हैं।
दोनों लड़कों ने इसका कुछ उत्तर न दिया। उनके मन में मन्त्र की बात बैठ गयी