शोकमय दृष्य था। प्रेमाकर बोलने लगे, कितनी विषम समस्या है। इन दोनों का कोई सहायक नहीं। आये दिन इन पर यही विपत्ति पडा करती है और ये बेचारे इनका निवारण नहीं कर सकते। साल-दौ-साल में जो कुछ तन-पेट काट कर संचय करते हैं वह जलदैव को भेंट कर देते हैं। कितना धन, कितने जीव इस भंवर में समा जाते हैं, किंतने घर मिट जाते हैं, कितनी गृहन्थियों का सर्वनाश हो जाता है और यह केवल इसलिए कि इनको गांव के किनारे एक सुदृढ़ बाँध बनाने की साहस नही है। न इतना धन है, न वह सहमति और सुसगठन है जो धन का अभाव होने पर भी बडे-बड़े कार्य सिद्ध कर देता है। ऐसा बाँध यदि बन जाय तो उसने इसी गांव की नहीं, आस-पास के कई गावों की रक्षा हो सकती है। मेरे पास इस समय चार पाँच हजार रुपये है। क्यों न इम बाँध में हाथ लगा दूँ? गाँव के लोग धन न दे सकें, मेहनत तो वर सकते हैं। केवल उन्हें संगठित करना होगा। दूसरे गाँव के लोग भी निस्सन्देह इस काम में सहायता देंगे। ओह, कही यह बाँध तैयार हो जाय तो इन गरीबों का कितना कल्याण हो।
यद्यपि प्रेमाकर बहुत अशक्त हो रहे थे, पर इन विचारों ने उन्हें इतना उत्साहित किया कि तुरन्त उठ खड़े हुए और लोगों के बहुत रोकने पर भी हाथ में डंडा ले कर नदी की और बाँध-स्थल का निरीक्षण करने चल खड़े हुए। जेब में पेंसिल और कागज भी रख लिया। कई आदमी साथ हो लिये। नदी के किनारे खड़े-खड़े वह बहुत देर तक रस्सी से नाप-नाप कर कागज पर बांध का नक्शा खींचते और उसकी लम्बाई, चौडाई, गर्भ आदि का अनुमान करते रहे। उन्हें उत्साह के वेग में यह काम सहज जान पडता था, केवल काम छेड देने की जरूरत थीं। उन्होंने वही खड़े-खडे निश्चय किया कि वर्षा समाप्त होते ही श्री गणेश कर दूंगा। ईश्वर ने चाहा तो जाड़े में बाँध तैयार हो जायगा। बाँध के साथ-साथ गाँव को भी पुनर्जीवित कर दूंगा| वाढ का भय तो न रहेगा, दीवारें मजबूत बनाऊँगा और उस पर फूस की जगह खपरैला को छाज रखूँगा!
भवानीसिंह ने कहा—बाबू जी, यह काम हमारे मान का नहीं हैं।
प्रेमाकर—है क्यो नही; तुम्हीं लोगों से यह काम पूरा कराऊँगा। तुमने इसे असाध्य सम्झ लिया है, इसी कारण इतनी मुसीबतें झेलते हो।
भवानी—गांव में आदमी कितने हैं?
प्रेम—दूसरे गांववाले तम्हारी मदद करेंगे, काम शुरू तो होने दो।
भवानी—जैसा बाँध आप सोच रहे हैं, पाँच-छह हजार से कम में न बनेगा।
प्रेम—रुपयो की कौई चिन्ता नही। कार्तिक आ रहा है, बस काम शुरू कर दो। दो तीन महीने में बाँध तैयार हो जायगा । रुपयों का प्रवन्ध जो कुछ मुझसे हों सकेगा मैं कर दूंगा।
भवानी—आपका ही भरोसा हैं।
प्रेम—ईश्वर पर भरोसा रखो।
भवानी—मजदूरों की मदद मिल जाय तो अगहन में ही बाँध तैयार हो सकता है: