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प्रेमाश्रम

खत्ते बनवा दिये थे। मोरियो को साफ करने के लिए भगी लगा दिये थे। लेकिन प्रजा इसे 'मुदाखलत बेजा' समझती थी और डरती थी कि कहीं रानी साहिबा हमारे घरों और खत्तो पर तो हाथ नहीं बढा रहीं हैं।

जाड़ो के दिन थे। गायत्री राप्ती नदी के किनारों के गाँवो में दौरा कर रही थी। अब की बाढ़ में कई गाँव डूब गये थे। कृषको ने छूट की प्रार्थना की थी। सरकारी कर्मचारियों ने इधर-उधर देख कर लिख दिया था, छूट की जरूरत नहीं है। गायत्री अपनी आँखो से इन ग्रामों की दशा देख कर यह निर्णय करना चाहती थी कि कितनी छूट होनी चाहिए। संध्या हो गयी थी। वह दिन भर की थकी-मादी थी, बिन्दापुर की छावनी में उदास पड़ी हुई थी। सारा मकान खंडहर हो गया था। इस छावनी की मरम्मत के लिए उसने कारिन्दो को सैकड़ो रुपये दिये थे, लेकिन उसकी दशा देखने से ज्ञात होता था कि बरसो से खपरैल भी नहीं बदला गया। दीवारे गिर गयी थी, कड़ियों के टूट जाने से जगह-जगह छत बैठ गयी थी। आँगन मै कूड़े के ढेर लगे हुए थे। यहाँ के कारिन्दो को वह बहुत ईमानदार समझती थी। उसके कुटिल व्यवहार पर चित्त बहुत खिन्न हो रहा था। सामने चौकी पर पूजा के लिए आसन बिछा हुआ।, लेकिन उसका उठने का जी न चाहता था कि इतने में एक चपरासी नै आ कर कहा, सरकार, कानूनगो साहब आये हैं।

गायत्री उठ कर आसन पर जा बैठी और इस भय से कि कही कानूनगो साहब चले न जाये, शीघ्रता से सध्या समाप्त की और परदा कराके कानूनगो साहब को बुलाया।

गायत्री---कहिए खाँ साहब। मिजाज तो अच्छा हैं? क्या आजकल पड़ताल हो रही हूँ?

कानूनगो-जी हाँ, आजकल हुजुर के ही इलाके का दौरा कर रही हैं।

गायत्री-आपके विचार में बाढ़ से खेती को कितना नुकसान हुआ?

कानूनगो-अगर सरकार के तौर पर पूछती है तो रुपये में एक आना, निज के तौर पर पूछती है तो रुपये में बारह आने।

गायत्री- आप लोग यह दोरगी चाल क्यों चलते है? आप जानते नहीं कि इसमे प्रजा का कितना नुकसान होता है?

कानूनगो-हुजूर यह न पूछे। दोरगी चाल न चले और असली बात लिख दे तो एक दिन में नालायक बना कर निकाल दिये जायें। हम लोगों से सच्चा हाल जानने के लिए तहकीकत नही करायी जाती, बल्कि उसको छिपाने के लिए। पेट की बदौलत सब कुछ करना पड़ता है।

गायत्री-पेट को गरीबो की हाय से भरना तो अच्छा नहीं। अगर अपनी तरफ से प्रज्ञा की कुछ भलाई न कर सके तो कम से कम अपने हाथ उनका अहित तो न करना चाहिए। इलाके को क्या हाल है?

कानूनगो—आपको सुन कर रंज होगा। सारन में हुजूर की कई बीघे सौर असामियों ने जीत ली है, जगराँव के ठाकुरों ने हुजूर के नये बाग को जोत कर खेत बनी