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प्रेमाश्रम

प्राण निकल से जाते है। अरदली और नौकर से निस्सकोच बातें करती है, लेकिन मेरे मित्रों की परछाई से भी भागती हैं। खीच-खाँच के लाऊँ भी तो सिर झुका कर अपराधियों की भाँति खड़ी रहेगी।

ज्ञान-अरे, तो क्या मेरी गिनती उन्हीं मित्रों में है?

ज्वाला--अभी तो आपसे भी झिझकेगी। हाँ, आपसे दो-चार बार मुलाकात हो, आपके घर की स्त्रियाँ भी आने लगे तो सम्भव है संकोच न रहे। क्यों न मिसेज ज्ञानशंकर को कल यहाँ भेज दीजिए? गाड़ी भेज दूंगा। आपकी वाइफ को तो कोई आपत्ति न होगी?

ज्ञान-जी नहीं, वह बड़े शौक से आयेंगी।

ज्ञानशंकर को अपने मुकदमे के सम्बन्ध में और कुछ कहने का अवसर न मिला, लेकिन वहीं से चले तो बहुत खुश थे। स्त्रियों के मेल-जोल से इन महाशय की नकेल मेरे हाथों मे आ जायगी। जिस कल को चाहूँ घुमा सकता हूँ। उन्हें अब अपनी सफलता में कोई संशय न रहा। लेकिन जब घर पर आ कर उन्होंने विद्या से यह चर्चा की तो वह बोली, मुझे तो वहाँ जाते झेंप होती है, न कभी की जान-पहचान, न रीति न व्यवहार। मैं वहाँ जा कर क्या बातें करूंगी? गूंगी बनी बैठी रहूँगी। तुमने मुझसे ने पूछा-ताछा, वादा कर आये?

ज्ञान-मिसेज ज्वालासिंह बड़ी मिलनसार हैं। उनसे मिल कर तुम्हें वहा आनन्द आयेगा।

विद्या--अच्छा, और मुन्नी को (छोटी लड़की का नाम था) क्या करूंगी? यह वहाँ रोये-चिल्लाय और उन्हें बुरा लगे तो?

ज्ञान--महरी को साथ लेते ना। वह लड़की को बाहर बगीचे में बहलाती रहेगी।

विद्या बहुत कहने-सुनने से अन्त में जाने पर राजी हो गयी। प्रात काल ज्वालासिंह की गाड़ी आ गयी। विद्या बढ़े ठाट से उनके घर गयीं। दस बजते-बजते लौटी। ज्ञानशंकर ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, कैसे मिली?

विद्या बहुत अच्छी तरह। स्त्री क्या है देवी है। ऐसी हँसमुख, स्नेहमयी स्त्री तो मैंने देखी ही नहीं। छोड़ती ही न थी। बहुत जिद की तो आने दिया। मुझे विदा करने लगी तो उनकी आँखो से आँसू निकलने लगे। मैं भी रो पड़ी। उर्दू, अँगरेजी सब पढ़ी हुई हैं। बड़ा सरल स्वभाव है। महरियों तक को तू नहीं कहती। शीलमणि नाम है।

ज्ञान---कुछ मेरी चर्चा भी हुई?

विद्या--हाँ, हुई क्यों नहीं? कहती थी मेरे बाबूजी के पुराने दोस्त है। तुम्हें उस दिन चिक की आड़ से देखा था। तुम्हारी अचकन उन्हें पसन्द नहीं। हँसकर बोली, अचकन क्या पहनते है, मुसलमानों को पहनाया है। कोट क्यों नहीं पहनते?

ज्ञानशंकर की आशा और उद्दीप्त हुई, लेकिन जब मुकदमा फिर तारीख पर पेश हुआ तो ज्वालासिंह के व्यवहार में जरा भी अन्तर ने था। बार-बार मुद्दई के गवाहों