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प्रेमाश्रम

लेकिन इतनी नहीं कि कोई उसके लिए चिरकाल के मन्सूवो को मिटा दे। विद्या की यह बुरी आदत है कि जिस बात पर अड़ जाती है उसे किसी तरह से नहीं छोड़तीं। मैं उबर चली जाऊँ और इधर यह रायसाहब में मेरी शिकायत कर तो बना-बनाया काम बिगड़ जाय। अब यह पहले की-सी सरला नहीं हैं। इसम दिनों-दिन आत्मसम्मान की मात्रा बढ़ती जाती है। इसे नाराज करने का यह अवसर नहीं।

वह इस चिन्ता में बैठे हुए थे कि गीलमणि की सवारी आ पहुँची। ज्ञानशकर ने निश्चय किया, स्वयं चल कर उससे अपना समाचार कहूँ। अभी तीनो महिलाएँ कुशल समाचार ही पूछ रही थी कि वह कुछ झिझकते हुए ऊपर आये और कमरे के द्वार पर चिलमन के सामने खड़े हो कर शीलमणि से बोले, भाभी जी को प्रणाम करता हूँ।

विद्या उनका आशय समझ गयी। लज्जा से उसका मुखमडल अरुण वर्ण हो गया। वह वहाँ से उठ कर ज्ञानशकर को अवहेलनापूर्ण नेत्रो से देखते हुए दूसरे कमरे में चली गयी। श्रद्धा मध्यस्थ का काम देने के लिए रह गयी।

ज्ञानशकर बोले, भाई साहब तो पर्दे के भक्त नहीं हैं, और जब हम लोगों में इतनी घनिष्ठता हो गयी है तो यह हिसाब उठ जाना चाहिए। मुझे अपने कितनी ही बाते कहनी है। परमात्मा ने आपको शील और विनय के गुणों से विभूषित किया है, इसके लिए मुझे आपसे निज के मामलों में जवान खोलने का साहस हुआ हैं। मुझे विश्वास है कि आप उसकी अवज्ञा न करेगी। मेरा एक इजाफा लगान का मुकदमा भाई साहब के इजलास में दो महीनों से पेश है। मैं उनका इतना अदब करता हैं कि इस विषय में उनसे कुछ कहते हुए संकोच होता है। यद्यपि मुझे वह भाई समझते हैं, लेकिन किसी कारण से उन्हें भ्रम होता हुआ जान पडता है कि मेरा दावा झूठा है, और मुझे भय है कि कही वह खारिज न कर दें। इसमें सन्देह नहीं कि दावे को खारिज करने का उन्हें बहुत दुःख होगा, लेकिन शायद उन्हें अब तक मेरी वास्तविक दशा का ज्ञान नहीं है। वह यह नहीं जानते कि इसमे मेरा कितना अपमान और कितना अनिष्ट होगा। आजकल की जमीदारी एक बला है। जीवन की सामग्रियाँ दिनो-दिन महँगी होती जाती हैं और मेरी आमदनी आज भी वही है जो तीस वर्ष पहले थी। एसी अवस्था मे मेरे उद्धार को इसके सिवा और क्या उपाय हैं कि असामियो पर इजाफा लगान करूँ । अन्न मोतियो के मोल बिक रहा है। कृषको की आमदनी दुगनी, बल्कि तिगुनी हो गयी है। यदि मैं उनकी बढी हुई आमदनी में से एक हिस्सा मांगता हूँ तो क्या अन्याय करता हैं ? अगर मेरी जीत हुई तो सहज में ही मेरी आमदनी एक हजार बढ जायेगी। हार हुई तो असामियो की निगाह में गिर जाऊँगा। वह शेर हो जायेंगे और बात-बात पर मुझसे उलझेगे। तब मेरे लिए इसके सिवा और मार्ग न रहेगा कि जमीदारी से इस्तीफा दे दूँ और मित्रों के सिर जा पडे़। (मुस्करा कर) आप ही के द्वार पर अड्डा जमाऊँगा और यदि आप मार-मार कर हटायें, तो भी हटने का नाम न लूँगा।

शीलमणि ने यह विवरण ध्यानपूर्वक सुना और श्रद्धा से बोली, आप तय है।