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प्रेमाश्रम

करेंगे। मगर दोनो के दोनो चल दिये। किसी को मुझ पर दया न आयी । लो राम-राम करती हूँ। अब परक्स्ती करो कि बातो के ही धनी थे।

यह कहते-कहते वह शव के पास से हट कर दूसरे पेड़ के नीचे जा बैठे। एक क्षण के बाद फिर बोले, अब इस माया-जाल को तोड़ दूँगा। बहुत दिन इसने मुझे उँगलियो पर नचाया, अब मैं इसे नचाऊँगा। तुम दोनो चल दिये, बहुत अच्छा हुआ। मुझे माया-जाल से छुड़ा दिया। इस माया के कारण कितने पाप किये, कितने झूठ बोले, कितनो का गला दवाया, कितनो के खेत काटे। अब सब पाप-दोष का कारण मिट गया। यह मरी हुई माया सामने पडी है। कौन कहता है मेरा बेटा था ? नही, मेरा दुश्मन था, मेरे गले का फन्दा था, मेरे पैरों की बेडी था। फन्दा छूट गया, बेडी कट गयी। लाओ, इस घर में आग लगा दो, सब कुछ भस्म कर दो। बलराज, खडा आँसू क्या बहाता है ? कहीं आग नहीं है? लाके लगा दे।

सब लोग खड़े रो रहे थे। प्रेमशकर भी करुणातुर हो गये। डपटसिंह के पास जा कर बोले, ठाकुर धीरज धरो। संसार का यही दस्तूर है। तुम्हारी यह दशा देख कर बेचारी स्त्रियाँ और भाई रो रहे है। उन्हें समझाओ।

डपटसिह ने प्रेमशकर को उन्मत्त नेत्रो से देखा और व्यग भाव से बोले, ओहो आप तो हमारे मालिक है। क्या जाफा वसूल करने आये हैं? उसी से लीजिए जो वहीं धरती पर पड़ा हुआ है, वह आपकी कौडी-कौडी चुका देगा। गौस खाँ से कह दीजिए, उसे पकड़ ले जाये, बाँधे, मारे, मैं न बोलूँगा। मेरा खेती बारी से, घर-द्वार से इस्तीफा है।

कादिर खाँ ने कहा, भैया डपट, दिल मजबूत करो। देखते हो, घर-घर यही आग लगी हुई है। मेरे सिर भी तो वहीं विपत्ति पड़ी है। इस तरह दिल छोटा करने से काम न चलेगा, उठी। कुछ कफन-कपड़े की फिकिर करो, दोपहर हुआ जाता है।

डपटसिंह को होश आ गया। होश के साथ आँसू भी आये। रो कर बोले, दादा, तुम्हारा-सा कलेजा कहाँ से लाये ? किसी तरह धीरज नहीं होता। हाय ! दोनों के दोनो चल दिये, एक भी बुढापे का सहारा न रहा। सामने यह लाश देख कर ऐसा जी चाहता है, गले पर गडाॅसा मार लूँ। दादा, तुम जानते हो कि कितना सुशील लडका था। अभी उस दिन मुग्दर की जोड़ी के लिए हल कर रहा था। मैंने सैकडो गालियाँ दी, मरने उठा। बेचारे ने जवान तक न हिलायी। हाँ, खाने-पीने को तरसता रह गया। उसकी कोई मुराद पूरी न हुई। न भर पेट खा सका, न तन भर पहन सका। धिक्कार है मेरी जिन्दगानी पर अब यह घर नही देखा जाता । झपट, अपना घर-द्वार सँभालो, मेरे भाग्य में ठोकर खाना लिखा हुआ है। भाई लोगो । राम-राम, मालिक को राम-राम, सरकार को राम-रामअब यह अभागा देश से जाता है,कहीं-सुनी माफ करना ।

यह कह कर डपटसिंह उठ कर कदम बढ़ाते हुए एक तरफ चले। जब कई आदमियो ने उन्हें पकडना चाहा तो वह भागे। लोगों ने उनका पीछ किया, पर कोई